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दो वोटर लिस्ट वालों को रोकने के हाईकोर्ट आदेश से चुनाव आयोग उलझन में, हाईकोर्ट का आदेश और चुनाव आयोग की उलझन

देहरादून: उत्तराखंड के पंचायत चुनाव में इस बार जो कुछ हो रहा है, वह पहले कभी नहीं हुआ। नैनीताल हाईकोर्ट ने एक ऐसा आदेश सुना दिया है जिससे राज्य निर्वाचन आयोग की नींद उड़ गई है। आदेश यह है कि कोई भी व्यक्ति यदि दो जगहों की वोटर लिस्ट में शामिल है एक निकाय क्षेत्र में और एक पंचायत क्षेत्र में तो वह पंचायत चुनाव में न तो वोट दे सकता है और न ही चुनाव लड़ सकता है।
अब ज़रा सोचिए, स्क्रूटनी हो चुकी है, नाम वापसी की आखिरी तारीख भी बीत चुकी है, उम्मीदवार प्रचार में लग चुके हैं और तभी हाईकोर्ट का यह आदेश आता है। आयोग के पास न तो वक्त है और न ही स्पष्टता कि अब किया क्या जाए। यही कारण है कि रविवार जैसे अवकाश के दिन भी चुनाव आयोग को हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा।
राज्य निर्वाचन आयोग के सचिव राहुल गोयल कह रहे हैं कि आदेश की कानूनी व्याख्या करवाई जा रही है और स्थिति स्पष्ट नहीं है कि अब चुनाव रद्द होंगे, टाले जाएंगे, या प्रभावित सीटों पर कोई और व्यवस्था होगी।
यह वही आयोग है, जो दो दिन पहले तक उम्मीदवारों को चुनाव चिन्ह देने की तैयारी कर रहा था, और अब वह यह समझने की कोशिश कर रहा है कि “कौन कहां से चुनाव लड़ सकता है और कौन नहीं।
सरकार पहले ही पंचायत चुनाव के नोटिफिकेशन को लेकर सवालों के घेरे में आ चुकी है। पहले नोटिफिकेशन को चुनौती दी गई, अब इस हाईकोर्ट आदेश ने सरकार और आयोग दोनों को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
कहने को यह लोकतंत्र का सबसे छोटा स्तर पंचायत चुनाव है, लेकिन इस बार इसने लोकतंत्र के बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।
यह सवाल अब और भी ज़रूरी हो गया है कि एक व्यक्ति का नाम दो वोटर लिस्ट में क्यों और कैसे है? क्या यह सिस्टम की खामी है, या फिर जानबूझकर की गई गलती? और अगर गलती है तो सज़ा सिर्फ उस व्यक्ति को क्यों, सिस्टम को क्यों नहीं?
हाईकोर्ट का आदेश यह ज़रूर कहता है कि दो जगह वोटर लिस्ट में नाम हो तो पंचायत चुनाव में हिस्सा नहीं लिया जा सकता, लेकिन यह नहीं बताता कि ऐसे नामों को समय रहते हटाया क्यों नहीं गया।
अब सबकी निगाहें हाईकोर्ट पर हैं। आयोग ने रविवार को प्रार्थना पत्र दाखिल कर दिया है और सुनवाई की उम्मीद है। देखना होगा कि क्या कोर्ट अपना आदेश वापस लेता है, संशोधन करता है या फिर चुनाव प्रक्रिया को रोक देता है। कुल मिलाकर यह सिर्फ चुनाव की नहीं, पूरे सिस्टम की परीक्षा है। सवाल यह नहीं कि कौन चुनाव लड़ेगा और कौन नहीं, सवाल यह है कि जब व्यवस्था ही दोहरापन (डुप्लिकेशन) को नहीं पकड़ पा रही, तब उससे पारदर्शिता की उम्मीद करना कितना जायज़ है?
उत्तराखंड में लोकतंत्र का सबसे बुनियादी ढांचा ग्राम पंचायत आज एक अदालती आदेश और दोहरी वोटर लिस्ट के बीच झूल रहा है। देखते रहिए, अगला आदेश लोकतंत्र की दिशा तय करेगा।

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