रेंजरों को पहले एसडीओ बनाने में दिया शिथिलीकरण का लाभ, अब डीएफओ बनाने में भी नियम किए जा रहे दरकिनार
देहरादून। लोकसभा चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले वन विभाग में रेंजर से पदोन्नत एसडीओ को डीएफओ की कुर्सी सौंपने की तैयारी है। आला अफसरों ने पहले तो रेंजरों को शिथिलीकरण का लाभ देकर एसडीओ के पद पर पदोन्नति दी, अब उन्हे प्रभागीय वनाधिकारी यानी डीएफओ की कुर्सी पर बैठाने की तैयारी है। विभागीय सूत्रों का कहना है कि पहले कनिष्ठ अधिकारियों को आनन फानन में दो साल से कम समय में ही रेंजर से एसडीओ और अब एसडीओ से डीएफओ बनाया जा रहा है। जबकि, रेंजर एसडीओ बनने के लिए न्यूनतम आठ साल और एसडीओ से डीएफओ में पदोन्नति के लिए न्यूनतम आठ साल की सेवा अनिवार्य है। लेकिन, वन विभाग में कुछ रेंजरों को जून- 2022 में 6 साल की सेवा अवधि पूरा करते ही शिथिलीकरण का लाभ देकर एसडीओ बना दिया गया। इस पदोन्नति से विभाग में उत्पन्न विवाद को लेकर शासन स्तर पर शिकायत भी हुई, लेकिन अनदेखी कर दी गई। अब आला अधिकारियों द्वारा एक बार फिर रेंजर से एसडीओ पद पदोन्नत अधिकारियों को दो साल की परीवीक्षा अवधि पूरा होने से पहले ही सभा नियमों, प्रावधानों को दरकिनार करते हुए डीएफओ बनाने की तैयारी है। विभागीय सूत्रों का कहना है कि रेंजर से बतौर डीएफओ पदोन्नति पाने वाले अधिकारियों में तीन सबसे वरिष्ठ अधिकारियों को भी दरकिनार किया जा रहा है। उल्लेखनीय पहलू यह है कि सीधी भर्ती से नियुक्त सभी एसीएफ जो एक साल के प्रशिक्षण के उपरांत एक महीने के भीतर ही विभाग में तैनाती देने वाले है और वरिष्ठता के आधार पर डीएफओ का प्रभार पाने के असली हकदार है। ऐेसे अधिकारियों को भी दरकिनार किया जा रहा है।
वरिष्ठता सूची नहीं तैयार कर पाए आला अधिकारी
विभागीय सूत्रों का कहना है कि उत्तराखंड सरकार सेवक ज्येष्ठता नियमावली-2002 के अनुसार विभाग में तैनाती के छह माह के अंदर ज्येष्ठता सूची तैयार होनी थी। दो साल बीत जाने के बावजूद ज्येष्ठता सूची नहीं बन पायी है। इस तरह की गड़बड़ी विभागीय अधिकारी पहले भी कर चुके है, जिस पर कोर्ट की फटकार भी पड़ी थी। अब जबकि तमाम प्रावधानों को दरकिनार कर पदोन्नति दी जा रही है तो विभागीय अफसरों में तरह तरह की चर्चाएं है। प्रमुख वन संरक्षक अनूप मलिक को फोन कर जब हमारे संवाददाता ने जब इस बारे में जानकारी चाही तो उन्होंने फोन नहीं उठाया।