

कांग्रेस ने पुष्पा नेगी पर जताया भरोसा, भाजपा पर तंज
हल्द्वानी: राजनीति में बहुत कुछ लिखा और बोला जाता है, लेकिन पंचायत की राजनीति वो ज़मीन है जहां से असल जनप्रतिनिधित्व की बुनियाद तैयार होती है। उत्तराखंड के नैनीताल जिले में यही लड़ाई अब तेज़ होती जा रही है। ज़मीन पर हलचल है, चेहरे बदले नहीं हैं, लेकिन रणनीति के रंग और दांव जरूर बदले हैं।
हल्द्वानी के सौरभ होटल जहां आमतौर पर शादी-ब्याह के शोर होते हैं अब प्रेस कॉन्फ्रेंस की गूंज सुनाई दी। कांग्रेस ने अपने पत्ते खोल दिए। रामगढ़ सीट से निर्वाचित पुष्पा नेगी को ज़िला पंचायत अध्यक्ष पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। वहीं उपाध्यक्ष पद के लिए देवकी बिष्ट को मैदान में उतारा गया है। फूल-मालाओं से लदी पुष्पा नेगी के चेहरे पर आत्मविश्वास था, और पीछे खड़े नेताओं के चेहरों पर एक बार फिर सत्ता में लौटने की उम्मीद।
इस दौरान नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने किसी भी शब्द को संकोच में नहीं रखा। उन्होंने सीधा भाजपा पर निशाना साधा और कहा कि प्रदेश की भाजपा सरकार जनता का विश्वास खो चुकी है। पंचायत चुनाव में ये साफ दिखाई दे रहा है।
उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा ने धनबल का खुला प्रयोग किया, आरक्षण में हेरफेर की, और लोकतंत्र को नीलाम करने की कोशिश की।
उनके मुताबिक भाजपा का मकसद स्पष्ट है सत्ता को किसी भी कीमत पर कब्जे में रखना, भले ही उसकी कीमत लोकतंत्र हो या संविधान।
कांग्रेस का दावा है कि उसने ज़िला और क्षेत्र पंचायत में बड़ी जीत हासिल की है और ज़िला पंचायत अध्यक्ष का पद भी उसके पास आएगा। यशपाल आर्य का यह बयान कहीं न कहीं कांग्रेस के आत्मविश्वास को दिखाता है, लेकिन यह आत्मविश्वास ज़मीन पर वोटों में तब्दील होगा या नहीं, ये सवाल बना रहेगा। कांग्रेस प्रत्याशी पुष्पा नेगी ने भी पूरी मजबूती से अपना पक्ष रखा, उन्होंने कहा मुझे पूर्ण विश्वास है कि सदस्यों का समर्थन मुझे मिलेगा और कांग्रेस पंचायत में नेतृत्व करेगी। उनके इस बयान के पीछे कांग्रेस की रणनीति है चेहरे को आगे करो, संगठन पीछे से ताकत दे।
इस मौके पर हल्द्वानी विधायक सुमित हृदयेश, पूर्व विधायक संजीव आर्य, महानगर अध्यक्ष गोविंद बिष्ट, पूर्व ज़िला अध्यक्ष सतीश नैनवाल, और कई अन्य वरिष्ठ नेता मंच पर मौजूद रहे। यह सिर्फ प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं थी, बल्कि एक संदेश था हम मैदान में हैं, मुकाबले को तैयार हैं।
यहां सवाल य़ह है कि क्या पंचायत का चुनाव भी अब उतना ही राजनीतिक और रणनीतिक हो गया है जितना विधानसभा या लोकसभा? क्या ज़िला पंचायत की कुर्सी अब सिर्फ विकास की कुर्सी नहीं, बल्कि आने वाले चुनावों की बुनियाद बन चुकी है?
भाजपा के ऊपर लगे आरोप गंभीर हैं। कांग्रेस का दावा भी दमदार है। अब देखना यह होगा कि ज़मीन पर किसकी गिनती भारी पड़ती है। फूलों से स्वागत करने से ज्यादा ज़रूरी होगा जिनके हाथ में वोट है, उनके मन में विश्वास पैदा करना।
राजनीति की इस नई लड़ाई में कौन जीतता है, कौन हारता है यह तो वक्त बताएगा। लेकिन य़ह लड़ाई आसान नहीं होने वाली।