यूसीसी के खुमार में डूबी सत्ता और पिछलग्गू अधिकारी रहे जिम्मेदार
अतिसंवेदनशीला के बावजूद अधूरी तैयारियों के साथ चला दी मदरसे और नमाज स्थल पर जेसीबी
बड़ा सवाल कि हिंसा भड़कने के बाद ही क्यों उठाए गए एहतियाती
कदम, खुफिया आशंकाओं को क्यों किया नजरअंदाज
पड़ताल
गौरव पांडेय
हल्द्वानी। 8 फरवरी का दिन हल्द्वानी के इतिहास में एक काला अध्याय जोड़ गया है। कौमों का गुलदस्ता कहे जाने वाले इस शहर ने हिंसा की वह आग देखी, जिसने थाने और वाहनों को आग के हवाले कर दिया। पुलिस, और नगर निगम कर्मियों पर हमला करने के साथ ही पत्रकारों को भी निशाना बनाया गया। छह लोगों को इस हिंसा में अपनी जान गंवानी पड़ी। शहर के कारोबार को हजारों करोड़ रूपये का नुकसान झेलना पड़ा। हिंसा से पहले एक ओर सत्ता यूसीसी कानून बनाने के बाद खुमार में डूबी थी। दूसरी ओर पिछलग्गू अधिकारी मदमस्त हो गए थे। इसी की अंजाम रहा कि कोर्ट में मामला विचाराधीन होने के बावजूद आनन-फानन में मदरसे और नमाज स्थल को ध्वस्त करने की रणनीति बनी। खुफिया एजेंसियों की तमाम आशंकाओं को नकारते हुए आधी अधूरी तैयारी के साथ प्रशासनिक अमला पुलिस फोर्स के साथ मदरसा और नमाज स्थल तोड़ने पहुंच गया। यहां जिलाधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, हल्द्वानी नगर आयुक्त समेत अधिकारियों की फौज की विवेकहीनता, अदूरर्शिता और विवादित स्थल तोड़ने की जिद हल्द्वानी हिंसा की पहली गुनाहगार रही। इसका खामियाजा शहर के अमन-चैन और शांति पर भारी पड़ा। शहरवासियों ने कई दिनों तक हिंसा के जख्म और उसकी पीड़ा को भीतर तक महसूस किया। हिंसा में लोगों को अपनी जान ही नहीं गंवानी पड़ी। पुलिस, नगर निगम कर्मियों के साथ पत्रकार तक चोटिल हुए। कई दिनों तक शहर का कारोबार प्रभावित रहा। हल्द्वानी हिंसा में अब तक हजारों करोड़ रूपये के कारोबारी नुकसान की आशंका है। इसके इतर करोड़ों की राजकीय संपत्तियों को भी नुकसान पहुंचा। इस हिंसा की आग आने वाले कुछ दिनों, महीनों ही नहीं सालों तक लोगों को झुलसाएगी। हिंसा को लेकर शहर का नाम बदनाम हुआ है, सो अलग।
इस बीच शासन के आदेश पर कुमाऊं आयुक्त हिंसा की मजिस्ट्रेटी जांच कर रहे हैं। आने वाले दिनों में यह भी साफ हो जाएगा कि हिंसा की जवाबदेही किस-किसकी है और कहां-कहां प्रशासनिक चूक रही। बहरहाल अब भी लोगों के जेहन में ये सवाल उठ रहे हैं कि अतिक्रमण हटाते वक्त क्यों इस संवेदनशील मसले पर हिंसा की पूर्व आशंकाओं की खुफिया रिपोर्ट को ताक पर रख दिया गया। इस मामले में जिम्मेदार अधिकारियों की इस कार्यप्रणाली ने उनकी क्षमताओं पर भी सवाल उठाए हैं।
प्रशानिक अक्षमताओं पर उठे सवाल
- जल्दबाजी और उतावलेपन में सरकार को भी नहीं दी जानकारी
- कोर्ट में मामला विचाराधीन होने के बावजूद दिखाया प्रशानिक अहम
- दोहपर में हुई कोर्ट में सुनवाई, शाम में अतिक्रमण तोड़ डाला
- आधी-अधूरी तैयारी के साथ पहुंचे प्रशानिक व पुलिस अधिकारी
- अतिसंवेदनशील मसला होने के बावजूद पहले क्यों नहीं लगाया
कर्फ्यू
- मदरसा और नमाज स्थल तोड़ने से पहले क्यों नहीं ठप किए संचार
साधन
- पथराव और आगजनी की आशंका के बावजूद क्यों नहीं उठाए गए
निरोधात्मक कदम
- हिंसा भड़काने की आशंका में संभावित उपद्रवियों को क्यों नहीं
रोका गया
- पर्याप्त संसाधनों के बिना पुलिस कर्मियों को क्यों झोंका हिंसा के
हवाले
- हिंसा की आशंका वाली खुफिया रिर्पोटों को क्यों किया नजरअंदाज
राजनीतिक तौर पर भाजपा को पहुंचा फायदा
हल्द्वानी। हल्द्वानी हिंसा मामले के सियासी निहितार्थ भी निकाले जा रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस घटना से भाजपा को राजनीतिक तौर पर विपक्षियों से बढ़त हासिल हुई है। लोकसभा चुनाव नजदीक हैं। नैनीताल-उधमसिंह नगर सीट की बात की जाए तो यहां हिंदूवादी एजेंडे को लेकर भाजपा को बढ़त मिल सकती है। वर्तमान दौर में किसान आंदोलन भाजपा के लिए सिरदर्द बना हुआ है। आशंका है कि नैनीताल सीट के तराई के किसान चुनाव में भाजपा के खिलाफ जा सकते हैं। ऐसे में सीट को बनाए रखना और जीत हासिल करना भी भाजपा के लिए एक चुनौती है। इस बीच हल्द्वानी हिंसा से राजनीतिक हालात बदले हैं। इस घटना के बाद नैनीताल लोकसभा सीट के हिंदू मतदाताओं के भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण की उम्मीद है। चूंकि इस मामले को कहीं न कहीं साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश भी की जा रही है।