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नई पीढ़ी ने परम्परागत पकवानों से बनाई दूरी फास्ट फूड पर फोकस

हल्द्वानी। शबाना अस्र की नमाज़ पढ़ ली हो तो पकौड़ियों के लिए तेल गर्म करने को रख दो, दूसरी तरफ से आवाज गूंजती है कि लुबना शरबत के लिए चीनी घोल लो, एक और आवाज आती है कि फलों की चाट बना लो और छोले उबलने के लिए रख दो… यह वो आवाजें हैं जो रमजान शुरू होते ही अमूमन मुस्लिम घरों में गूंजने लगती हैं।
य़ह वो आवाज है रमजान शुरू होते ही अमूमन मुस्लिम घरों में गूँजने लगती है। रमजान के दौरान इस तरह का प्रचलन वैसे तो अभी भी मुस्लिम परिवारों में जारी है लेकिन धीरे धीरे यह परम्परा अब बदलनी शुरू हो गई है। युवा पीढ़ी की बदलती सोच और उन पर हावी आधुनिकता के चलते कहीं न कहीं रमजानो के दौरान वसी (बुलन्द) रहने वाले दस्तरख्वानों का दायरा सिकुड़ना शुरु हो गया है। घरों के बावर्चीखानों (रसोई) की चहल पहल पर पहरा सा बैठ गया है। ऑनलाइन फूड डिलीवरी सिस्टम के वजूद में आने के बाद यह भारतीय परम्परा कहीं न कहीं गुम सी होती जा रही है। परम्परागत मुगलई व्यंजनों की जगह धीरे धीरे फास्ट फूड ने लेनी शुरू कर दी है। युवा पीढ़ी का रूझान रमजानों के दौरान लस्सी व शिकंजी जैसे भारतीय पेय पदार्थों से हटकर विभिन्न फ्लेवर के ‘शेक’ की ओर हो गया है। इसके अलावा नई पीढ़ी परम्परागत भारतीय व्यंजनों के मुकाबले फास्ट फूड को तरजीह दे रही है। कॉलेज कैंपस व पीजी में रह रहे नौकरी पेशा युवकों से लेकर छात्रों तक में ऑन लाइन फूड डिलीवरी सिस्टम तेजी से डेवलप हो रहा है। इसके अलावा टिफिन सिस्टम भी चलन में है। हालत तो यह है कि सुबह फज्र की नमाज से पूर्व की जाने वाली सहरी तक के लिए ऑन लाइन फूड डिलीवरी करने वाली विभिन्न कंपनियों के साथ साथ घरों पर टिफिन तैयार करने वाली कुछ गृहणियों के अनुसार आम दिनों के मुकाबले वो रमजान के दौरान अपना मेन्यू बदल देते हैं। मुस्लिम नौकरी पेशा व छात्रों के लिए वो नॉन वेज आइटम के साथ साथ इफ्तारी व सहरी में अमूमन इस्तेमाल होने वाले व्यंजनों को शामिल करते हैं।

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