ख़बर शेयर करें -

मंत्रिमंडल विस्तार न होने से मंत्रियों पर भारी-भरकम बोझ

पर्याप्त समय न देने से विभाग होते जा रहे गैर जिम्मेदार

राजेश सरकार

देहरादून। मर्चुला के निकट कूपी में हुई दर्दनाक बस दुर्घटना के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों को बजट आवंटित किए जाने के बावजूद सड़क पर क्रश बैरियर न लगाए जाने के बाबत पूछा। चौंकाने वाली बात यह रही कि अधिकारियों के पास इस लापरवाही का कोई ठोस जवाब नहीं था। दुर्योग से यह दर्दनाक हादसा हो गया और यह विभागीय उदासीनता सामने आ गई, वरना ये क्रश बैरियर कब तक लग पाते इसका किसी को कुछ पता नहीं। अधिकारियों का इस मामले में जवाब देने से मुंह चुराना मात्र इस प्रकरण तक ही सीमित नहीं है। इस उत्तरहीनता ने उत्तराखंड सरकार के विभागों में व्याप्त एक व्यापक समस्या को सतह पर लाकर रख दिया है। स्पष्ट बजट आवंटन और विभिन्न विकास कार्यों के लिए की गई घोषणाओं के बावजूद, इन कार्यों को जमीनी स्तर पर लागू करने के लिए आवश्यक निगरानी तंत्र का अभाव है। पीडब्ल्यूडी अकेला ऐसा विभाग नहीं है, राज्य के लगभग सभी विभागों में इसी प्रकार की अक्षमताएं और कार्यान्वयन की कमी देखी जा सकती है। अगर हम गौर करें तो विभागों पर इस निगरानी तंत्र के अभाव का बड़ा कारण राज्य के मंत्रियों पर कार्यों का अत्यधिक बोझ भी है। मौजूदा समय में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी स्वयं 29 विभागों को संभाल रहे हैं। वहीं, दूसरे नंबर के मंत्री सतपाल महाराज के पास 10 विभागों का कार्यभार है। लगभग यही हाल मंत्रिमंडल के अन्य चुनींदा मंत्रियों का भी है। हर मंत्री पर जिम्मेदारी के इस भारी-भरकम बोझ के चलते वे अपने-अपने पास मौजूद विभागों को पर्याप्त समय और निगरानी नहीं दे पा रहे हैं और विभागों की पौ-बारह है। एक-एक मंत्री पर कई-कई विभागों के भारी-भरकम बोझ की एक वजह कैबिनेट विस्तार का अभाव भी है। मंत्रिमंडल में अभी तीन मंत्री पद खाली चल रहे हैं। पिछले दो साल में मुख्यमंत्री की हर दिल्ली यात्रा के साथ इन रिक्त स्थानों को भरे जाने की चर्चा उठती रही है और उनके दिल्ली से लौटते ही चर्चा ठंडी पड़ जाती है। बावजूद इसके कि सत्तारूढ़ भाजपा के पास कई अनुभवी और कई युवा विधायक सदन में उपलब्ध हैं, फिर भी उन्हें मंत्रिमंडल विस्तार न जाने क्यों अरसे से लटका पड़ा है। अगर मंत्रिमंडल विस्तार होता तो स्वाभाविक था कि मौजूदा मंत्रियों पर कई विभागों का बोझ हल्का हो जाता और वे अपने बाकी विभागों को अधिक समय दे सकते। साथ ही नए बने मंत्री भी महत्वपूर्ण विभागीय कार्यों पर अधिक फोकस और निगरानी रख सकते थे। चूंकि मंत्री ओवर बिजी हैं तो नियमित तौर पर कोई निगरानी नहीं है। निगरानी नहीं है तो विभागों की कार्यप्रणाली में ढीलापन आ गया है और पीडब्ल्यूडी द्वारा समय पर क्रश बैरियर न लगाना इसी व्यवस्थागत कमी का परिणाम है। पिछले दिनों भाजपा के वरिष्ठ नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो में सरकार के कामकाज के तरीके की तरफ इशारा करते नजर आए थे। उनका ये वीडियो काफी हद तक यह बताता है कि प्रदेश में विभाग किस तरह चल रहे हैं। विभागीय अधिकारी इस बात को समझते हैं कि उनके कामकाज की कोई सख्त निगरानी नहीं हो रही है। इस कारण वे मनमौजी तरीके से काम कर रहे हैं। यदि निगरानी तंत्र मजबूत हो तो फिर नौकरशाही इस उदासीनता की हिमाकत नहीं कर सकती है। निगरानी तंत्र को मजबूत बनाने का एक ही उपाय है मंत्रियों को काम के भारी बोझ से उबारना और उन्हें इस बोझ से उबारने का एक ही तरीका है मंत्रिमंडल का विस्तार, क्योंकि निगरानी के लिए जितनी अधिक आँखें, जितने अधिक हाथ होंगे, यह तंत्र उतना ही अधिक चौकस होगा और इसका स्वाभाविक परिणाम विभागों की कार्यकुशलता में सुधार के रूप में ही सामने आएगा।     
 

Advertisement
Ad Ad Ad Ad Ad Ad
यह भी पढ़ें 👉  पूर्वजों के दान पर वंशजों की गिद्ध नजर

Comments

You cannot copy content of this page