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व्यापार मंडल में विघटन, एकता में कमजोरी, कई व्यापारी नेताओं पर उठ रही उंगलिया
हल्द्वानी: “सङ्घे शक्ति: कलौ युगे” इस श्लोक का अर्थ है कि कलयुग में संगठन की शक्ति में ही सफलता निहित है, और यह कथन कुछ साल पहले हल्द्वानी व्यापार मंडल पर बिल्कुल सटीक बैठता था। लेकिन अब वही व्यापार मंडल विभिन्न धड़ों में बट चुका है। कुमाऊं से लेकर पूरे प्रदेश में अपनी धाक जमा चुका व्यापार मंडल, जो पहले एक आवाज पर प्रदेशभर में व्यापारी गतिविधियों को थाम लेता था, अब लुप्तप्राय सा हो चुका है।
पिछले कुछ वर्षों में व्यापार मंडल की गतिविधियों में गहरी गिरावट आई है और अब व्यापारी हितों के लिए किए जाने वाले संघर्ष की धार भी कमजोर सी हो चली है। इस बदलाव के पीछे व्यापार मंडल के भीतर की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं जिम्मेदार मानी जा रही हैं। व्यापार मंडल के नेताओं पर आरोप है कि उन्होंने व्यापारिक हितों की बजाय अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को प्राथमिकता दी और इसके चलते संगठन में दरार आई।
बताया जा रहा है कि कुछ व्यापारी नेताओं ने अपने स्वहितों को तवज्जो दी और युवा नेताओं को आगे बढ़ने से रोका, जिससे उनमें नाराजगी और असंतोष बढ़ा। नतीजतन, व्यापार मंडल में बिखराव की स्थिति उत्पन्न हुई और आधा दर्जन से अधिक नए व्यापारिक संगठन अस्तित्व में आ गए।
हल्द्वानी, जिसे प्रदेश की आर्थिक राजधानी माना जाता है, जहां राजनीति और व्यवसाय दोनों का महत्वपूर्ण केंद्र है, वहां के व्यापार मंडल का विघटन व्यापारिक एकता को खंडित करने का कारण बना। अब हल्द्वानी में कई व्यापार संगठन सक्रिय हैं, जिनमें देवभूमि व्यापार मंडल, उत्तराखंड देवभूमि व्यापार मंडल, प्रांतीय नगर उद्योग व्यापार मंडल, प्रांतीय उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल, अखिल भारतीय व्यापार मंडल और हाल ही में अस्तित्व में आया सशक्त उद्योग व्यापार मंडल शामिल हैं।
इन अलग-अलग धड़ों का उद्देश्य भले ही व्यापारिक हितों की रक्षा करना हो, लेकिन आपसी समन्वय की कमी के कारण इनमें आपसी बिखराव बढ़ता जा रहा है। एक उदाहरण के तौर पर, हाल ही में सड़क चौड़ीकरण के मामले में जब एक संगठन ने बाजार बंदी की घोषणा की, तो दूसरे संगठन ने इसका विरोध करते हुए बाजार को खुला रखने की बात की। इससे व्यापारी एकता को नुकसान हुआ।
वहीं, एक व्यापारी नेता जिन्होंने पहले व्यापारी हितों की लड़ाई लड़ी थी, अब चुपचाप भाजपा में शामिल हो गए हैं और हल्द्वानी नगर निगम के मेयर पद के लिए चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। इस बदलाव पर सवाल उठते हैं कि क्या भाजपा उन्हें अपनी उम्मीदों पर खरा उतरेगा, क्योंकि न तो उनका ओबीसी वर्ग में मजबूत जनाधार है, और न ही उन्हें सक्रिय राजनीति का अनुभव है।
इस बीच, व्यापार मंडल के एक धड़े ने भाजपा के युवा नेता गजराज बिष्ट को समर्थन देने का ऐलान किया है, और यह संकेत देता है कि उक्त व्यापारी नेता के लिए राजनीति में रास्ता कठिन हो सकता है।
स्वागत और विदाई तक सीमित
कुछ व्यापार मंडल केवल औपचारिकता निभाने तक ही सीमित हो गए हैं, जैसे बड़े अधिकारियों का स्वागत और विदाई करना, जबकि उनका मुख्य उद्देश्य और व्यापारियों की असल समस्याओं को हल करने का काम पीछे छूट जाता है। यह आलोचना उस स्थिति की है, जहां व्यापार मंडल अपनी ज़िम्मेदारी को सिर्फ रस्मी तौर पर निभा रहे हैं, बजाय इसके कि वे व्यापारियों के अधिकारों और समस्याओं को सुलझाने में सक्रिय रूप से शामिल हों।
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