सुप्रिम कोर्ट के घेरे में रामदेव
योग गुरु बाबा रामदेव व उनका व्यवसायिक उद्यम पतंजलि आयुर्वेद पिछले दिनों एक बार फिर उस समय सुर्खियों में आया जबकि रामदेव व पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक व सीईओ आचार्य बालकृष्ण ने सुप्रीम कोर्ट में चल रहे पतंजलि आयुर्वेद के गुमराह करने वाले एक दवा विज्ञापन मामले में सर्वोच्च न्यायालय में बिना शर्त अपनी गलती की माफी मांगी। गौरतलब है कि ‘पतंजलि वेलनेस’ ने एक विज्ञापन देश के टी वी चैनल्स व विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित किया था जिसके माध्यम से एलोपैथी पर गलतफहमियां’ फैलाने का आरोप लगाया गया था। इसी विज्ञापन को लेकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने 17 अगस्त 2022 को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इस याचिका की सुनवाई में आईएमए ने दिसंबर 2023 और जनवरी 2024 में देश के अनेक अखबारों में जारी किए गए गुमराह करने वाले विज्ञापनों को अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया। साथ ही 22 नवंबर 2023 को पतंजलि के एड बालकृष्ण व बाबा रामदेव की उस पत्रकार वार्ता के बारे में भी बताया गया जिसमें पतंजलि ने मधुमेह और अस्थमा को ‘पूरी तरह से ठीक’ करने का दावा किया था। इसी मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने पतंजलि को सभी भ्रामक दावों वाले विज्ञापनों को तुरंत बंद करने का आदेश देते हुये यह भी कहा था कि अदालत ऐसे किसी भी उल्लंघन को बहुत गंभीरता से लेगा और हर एक प्रोडक्ट के झठे दावे पर 1 करोड रुपए तक जर्माना लगा सकता है। इसी मामले में अवमानना नोटिस का जबाव न देने पर बाबा रामदेव व आचार्य बालकृष्ण दोनों को 2 अप्रेल को अदालत में व्यक्तिगत रूप में पेश होने का निर्देश भी दिया था।
योग विद्या को माध्यम बनाकर दिन दूनी रात चौगुनी की दर से अपना व्यवसाय चमकाने वाले रामदेव का विवादों से पुराना नाता रहा है। पतंजलि आयुर्वेद में हालांकि मुख्य चेहरा रामदेव का ही है परन्तु रामदेव ने पतंजलि आयुर्वेद का चेयरमैन व सीईओ अपने सबसे विश्वस्त सहयोगी नेपाली मूल के बाल किशन को बनाया है। यही वजह है कि पतंजलि आयुर्वेद में जहां रामदेव का कोई हिस्सा नहीं है वहीं इसके 94 प्रतिशत हिस्से के मालिक अकेले बाल किशन हैं। रामदेव द्वारा आयुर्वेद अथवा इससे सम्बंधित उत्पादों को बनाना बेचना व इनके उचित विज्ञापन देना तक तो ठीक है परन्तु प्रायः वे अपने उत्पाद को सही ठहराने के लिए अक्सर दूसरी औषधीय प्रणालियों पर भी हमलावर हो जाते हैं। उन्हें विश्व विख्यात व सर्व स्वीकार्य एलोपैथी चिकित्सा प्रणाली से बड़ी चिढ़ है। कोरोना काल में जिस भारतीय वैक्सीन को लेकर भारत सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है. उसकी आलोचना में भी रामदेव ने कोई कसर बाकी नहीं रखी। अभी भी कई जगह सार्वजनिक मंचों से वे यह कहते नजर आते हैं कि वैक्सीन लगवाने के बाद तमाम लोग गंभीर बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। यानी एक ओर तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित पूरी भारत सरकार ने देश के लोगों को कोरोना वैक्सीन लगवाने हेतु प्रोत्साहित किया जबकि ठीक इसके विपरीत रामदेव लोगों को वैक्सीन लगवाने के प्रति हतोत्साहित करते रहे। सवाल यह है कि उनमें इतना साहस आता कहां से है?
दरअसल रामदेव ने योग व इसके टीवी प्रचार के माध्यम से पहले तो स्वयं को प्रसिद्धि दिलाई। उसके बाद जब योग के बहाने राष्ट्रीय स्तर पर उनके समर्थकों की संख्या बढ़ने लगी तो नेता उनकी ओर स्वयं आकर्षित होने लगे। क्योंकि स्वभाविक है नेताओं को वह व्यक्ति बहुत भाता है जिसमें भीड़ को आकर्षित करने की क्षमता हो। इसी का लाभ उठाकर रामदेव ने अपने पतंजलि परिसर में नरेंद्र मोदी से लेकर बड़े से बड़े नेताओं मंत्रियों व मख्यमंत्रियों को किसी न किसी आयोजन के बहाने आमंत्रित किया। यहां तक कि कोरोनकाल में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन के हाथों कोरोना की अपनी दवाई कोरोनिल का भी उद्घाटन करा दिया जिसे लेकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने दवा की विश्वसनीयता को खुली चुनौती दी। रामदेव अनेक मुख्यमंत्रियों व केंद्रीय नेताओं से सम्बन्ध बनाकर विभिन्न राज्यों में अपने उद्योग के विस्तार हेतु जमीनें भी ले चुके हैं। वह रामदेव ही थे जिन्होंने पहले तो 2012 में ट्वीट किया कि अगर कालाधन वापस आ गया तो पेट्रोल 30 रुपये प्रति लीटर मिलेगा परन्तु जब तेल की कीमतें 100 रुपए से ऊपर चली गयीं तो गयीं तो बड़ी ही चतुराई से उन्होंने वो ट्वीट डिलीट कर डाला। रामदेव 20 करोड़ युवाओं को रोजगार दिलाने का वादा भी करते फिरते थे। इसी सम्बन्ध में करनाल में जब एक पत्रकार ने रामदेव से पेट्रोल की कीमतों संबंधी उनके पुराने बयान के बारे में पूछा तो रामदेव उसपर आग बबूला हो गए। रामदेव ने पहले तो उसे चुप हो जाने को कहा। फिर कहा-हां मैंने कहा था। क्या पूंछ उखाड़ लेगा मेरी? तुम्हारे प्रश्नों के उत्तर देने का कोई ठेका ले रखा है मैंने? कर ले क्या कर लेगा। चुप हो जा। आगे कुछ पूछेगा तो ठीक नहीं। इसी तरह कुछ समय पूर्व बाबा रामदेव ने ओबीसी समुदाय पर आपत्तिजनक टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘मेरा मूल गोत्र है ब्राह्मण गोत्र, और मैं अग्निहोत्री ब्राह्मण हूं। ओबीसी वाले ऐसी तैसी करायें।’ परंतु जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो बाबा रामदेव साफ मुकर गए और कहा कि मैंने कभी ओबीसी पर कोई बयान नहीं दिया बल्कि मैंने तो ‘ओवैसी’ कहा था क्योंकि उनके पूर्वज हमेशा राष्ट्रविरोधी रहे हैं। अपनी ही कही बात से साफ मुकरने और इस तरह घुमाने की कला कम ही लोगों को आती है। कहना गलत नहीं होगा कि बाबा रामदेव केवल चतुर ही नहीं बल्कि शातिर भी हैं।
निर्मल रानी