

सिलाई बैंड की चुप्पी में गूंज रही हैं मजदूरों की चीखें
देहरादून: उत्तराखंड के उत्तरकाशी में फिर एक बार आसमान ने कहर बरपाया है। यमुनोत्री हाईवे पर सिलाई बैंड के पास बीती रात तीन बजे बादल फटा। पहाड़ ने अपना धैर्य खोया और इंसानी ज़िंदगियाँ मलबे में दफन होती चली गईं। खेत मलबे से पट गए, सड़कें बह गईं, और पहाड़ों की छाती चीरती बारिश ने नौ ज़िंदगियों को लापता कर दिया।
ये कोई महानगर की सड़क पर खोए हुए चेहरे नहीं हैं। ये वो लोग हैं, जो टेंट में रहकर सड़कों को बनाने का काम कर रहे थे ताकि कोई तीर्थयात्री अपनी श्रद्धा की यात्रा पूरी कर सके। रात की नींद में सोते हुए मजदूरों को क्या पता था कि पहाड़ की चुप्पी इस बार उनकी कब्र बन जाएगी। रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है। एसडीआरएफ, एनडीआरएफ, पुलिस, राजस्व विभाग सब लगे हुए हैं। मगर सवाल उठता है कि हर बार ऐसा क्यों होता है? जब कोई टेंट में सो रहा होता है, तब क्यों पहाड़ फटता है? क्यों हमारी चेतावनियाँ सिर्फ कागज़ों पर होती हैं? क्यों उन लोगों की ज़िंदगी सबसे सस्ती होती है, जो हमारे लिए सबसे खतरनाक काम करते हैं?
सिलाई बैंड से आगे यमुनोत्री हाईवे का 10 से 12 मीटर हिस्सा बह चुका है। रास्ता बंद है। रास्ते में फंसे हैं तीर्थयात्री करीब एक हजार से ज्यादा। जानकीचट्टी, फूलचट्टी, खरसाली, स्याना चट्टी हर नाम एक उम्मीद की तरह है, लेकिन इस वक्त ये उम्मीदें मलबे के नीचे दबी हैं।
कुथनौर में किसानों की ज़मीन भी तबाह हो गई। खेत अब सिर्फ मिट्टी और पत्थर हैं। पर ‘कोई जनहानि नहीं हुई’ जैसी सरकारी भाषा में इन खेतों के मालिकों की पीड़ा दर्ज नहीं होती।
हम फिर से वही खबर लिख रहे हैं, जो हर साल बरसात में आती है। बस जगह बदल जाती है, चेहरे बदल जाते हैं, मलबा वही रहता है। पहाड़ खामोश है, लेकिन उसके नीचे चीखें दबी हुई हैं।






