

ये सिर्फ ऑडिट रिपोर्ट नहीं, ये चार्जशीट है, ऑपरेशन थिएटर से लेकर कैमरे तक में खेल, मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़
देहरादून: सरकारी अस्पतालों की इमरजेंसी ब्लॉक भी अब ठेके और कमीशन का मैदान बन चुके हैं। यह खबर देहरादून के उस दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल की है, जिसे उत्तराखंड के स्वास्थ्य तंत्र की रीढ़ माना जाता है। लेकिन इस रीढ़ की हड्डियों में अब भ्रष्टाचार का वायरस लग चुका है।
अगस्त 2025 में जो ऑडिट हुआ, वो सिर्फ कागजों की जांच नहीं थी वो उस व्यवस्था का पोस्टमार्टम था, जो मरीजों को जीवन देने के लिए बनी थी, लेकिन अब मुनाफा कमाने की मशीन बन चुकी है।
सीएसएसडी यानी Central Sterile Services Department जहाँ इन्फेक्शन से लड़ने वाली मशीनें होनी चाहिए थीं वहां भी सब गोलमाल है। खेल इस तरह हुआ कि अधिकतर भुगतान के बाद कम कीमतों के उपकरण लगाए गए, जैसे दो मशीनें एक करोड़ में आनी थीं लेकिन सिर्फ 13.90 लाख में आपूर्ति आदेश जारी कर दिया गया। अब सवाल यह है कि क्या वो मशीनें आईं भी या सिर्फ कागज पर दौड़ीं?
61आधुनिक सीसीटीवी कैमरे 54553 रुपये प्रति कैमरा लगने थे।
लेकिन लगाए गए महज 4000 रुपये के कैमरे। कुल लागत होनी थी 33.27 लाख और लगाए गए सिर्फ 2.44 लाख के। ये वही कैमरे हैं जो ऑपरेशन थिएटर, इमरजेंसी और संवेदनशील क्षेत्रों की निगरानी के लिए जरूरी थे। अब आप समझ सकते हैं कि मरीज नहीं सिर्फ आंकड़े सुरक्षित हैं।
डीपीआर यानी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के मुताबिक 213.38 लाख रुपये के उपकरण लगने थे। लेकिन सिर्फ 30.84 लाख के आपूर्ति आदेश जारी किए गए। इसे 1.82 करोड़ रुपये की ‘बचत’ कहे या सिस्टम की कमर तोड़कर पैसा जेब में डालने की तरकीब। इतना ही नहीं
नॉन-शेड्यूल आइटम्स में 80 लाख की जगह सिर्फ 14.5 लाख के सामान खरीदे गए, कुल मिलाकर 3.45 करोड़ रुपये की सामग्री, मशीनें और उपकरण या तो अधूरी थीं सस्ती थीं या कहीं और गईं।
थर्ड पार्टी जांच के कोई दस्तावेज नहीं, उपयोगिता प्रमाण पत्र गायब, शिकायत की जांच पर भी पर्दा और कॉलेज प्रबंधन वह या तो आंखें मूंदे बैठा रहा या फिर मिलीभगत में लिप्त था। इस मामले में 29 सितंबर को प्राचार्य डॉ. गीता जैन ने एक जांच कमेटी बनाई थी, लेकिन तीन दिन बाद एमएस डॉ. आरएस बिष्ट ने पत्र लिखकर जांच से खुद को य़ह कहकर अलग कर लिया कि य़ह जांच किसी सक्षम अधिकारी से करायी जानी चाहिए। अब जब जिम्मेदार लोग ही पल्ला झाड़ने लगें तो आप समझ सकते हैं कि मामला कितना गंभीर है। अब यहां सवाल य़ह उठता हैं कि इतने बड़े पैमाने पर अधोमानक उपकरण क्यों लगाए गए?, क्या मरीजों की सुरक्षा अब ठेकेदारों के मुनाफे पर निर्भर करेगी?, क्या मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पर की गई शिकायत भी सिर्फ दिखावा थी? और सबसे बड़ी बात कि उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम को फायदा पहुंचाने में किसका हाथ है? कुल मिलाकर ये उस खामोशी की गूंज है, जो हर दिन अस्पताल की दीवारों में गूंजती है, जब एक मरीज इलाज के लिए लाइन में खड़ा होता है और सिस्टम उसे चुपचाप मौत की ओर ढकेल देता है। अब देखना ये है कि जांच होगी या इस रिपोर्ट को भी रद्दी की टोकरी में डाल दिया जाएगा। क्या वाकई किसी की जिम्मेदारी तय होगी या फिर सिस्टम अपनी आदत के मुताबिक फिर से ‘सब चुप’ हो जाएगा?
गतिमान है इस प्रकरण में जांच
दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल के ओटी इमरजेंसी ब्लॉक के निर्माण कार्यों में यूपीआरएनएन द्वारा डीपीआर में निर्धारित दरों से कम कीमतों पर उपकरण और सामग्री लगाए जाने की शिकायतों की जांच वर्तमान में निदेशालय स्तर पर गंभीरता से की जा रही है।
अभी यह मामला ऑडिट रिपोर्ट के अधीन है, और सभी संबंधित दस्तावेजों की समीक्षा की जा रही है। जांच पूरी होने के बाद हम विस्तृत जवाब संबंधित विभाग को उपलब्ध कराएंगे।
डॉ. गीता जैन, प्राचार्य, दून मेडिकल कॉलेज
निष्पक्ष जांच हो और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए
जैसे ही यह मामला मेरे संज्ञान में आया, मैंने तत्काल इसकी शिकायत संबंधित स्तर पर की थी। वर्तमान में प्रकरण की जांच शासन स्तर पर गतिमान है। जांच प्रक्रिया पूर्ण होने और रिपोर्ट आने के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना उचित होगा। मैं चाहता हूं कि मामले की निष्पक्ष जांच हो और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए।
दिलीप सिंह रावत, विधायक, लैंसडोन
स्वास्थ्य मंत्री ने कॉल रिसीव नहीं की
इस मामले में जब हमने स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत से उनका पक्ष जानने के लिए उनके मोबाइल फोन पर संपर्क साधने का प्रयास किया, तो उन्होंने कॉल रिसीव नहीं की। उनके स्तर से इस विषय पर कोई प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हो सकी है।






