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रुद्रपुर में कांग्रेस की खुली महाभारत

राजीव चावला

रुद्रपुर: उत्तराखंड की राजनीति में सियासी सूरज निकला नहीं कि कांग्रेस के दो सूरमा एक-दूसरे की तलवारों की चमक से आंखें चुराने लगे। बुधवार को रुद्रपुर की जमीन पर कांग्रेस की गुटबाजी फिर खुलकर सामने आई। किसान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हरेंद्र सिंह लाड़ी और किच्छा के विधायक तिलकराज बेहड़ ने ऐसा मौखिक युद्ध छेड़ा कि सुनने वालों को लगा, मानो चुनाव नहीं, कुरुक्षेत्र सामने आ गया हो।
दोपहर की धूप में जब पत्रकारों का जमावड़ा हुआ, तो हरेंद्र सिंह लाड़ी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में विधायक बेहड़ पर जमकर शब्दों के बाण चलाए। लाड़ी ने बेहड़ पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि रुद्रपुर और गदरपुर में कांग्रेस कमजोर है और इसके लिए जिम्मेदार सिर्फ तिलकराज बेहड़ हैं। उनके पास पार्टी विरोधी गतिविधियों के पुख्ता सबूत हैं। उन्होंने आगे कहा कि अगर बेहड़ खुद को तराई का शेर मानते हैं, तो मैं उत्तराखंड का बब्बर शेर हूं। रुद्रपुर बुलाएं, मैं आकर हुंकार भरने को तैयार हूं।
अब राजनीति में तंज का जवाब तंज से ही दिया जाता है। विधायक तिलकराज बेहड़ भी चुप कहां रहने वाले थे। शाम चार बजे उन्होंने प्रेसवार्ता कर लाड़ी पर उसी अंदाज़ में पलटवार किया। विधायक बेहड़ बोले अगर मुझे छेड़ा गया, तो मैं पार्टी हाईकमान के सामने जयचंदों की चौकड़ी का भंडाफोड़ कर दूंगा।
उन्होंने याद दिलाया कि 2002 से अब तक उन्होंने हर चुनाव में कांग्रेस को मजबूत करने की भूमिका निभाई है, और जब 2011 में सांप्रदायिक तनाव फैला, तो कुछ ‘पार्टी विरोधी तत्वों’ ने कांग्रेस की नींव हिलाने की कोशिश की जिनमें इशारों-इशारों में लाड़ी भी शामिल बताए गए। बेहड़ ने लाड़ी को सीधी चुनौती देते हुए कहा कि अगर इतनी ही चिंता है रुद्रपुर की, तो चुनाव मैदान में उतरें और जीतकर दिखाएं।
अब यहां सवाल ये है कि जब चुनाव नजदीक हों, तो कांग्रेस के दो बड़े चेहरे यूं आमने-सामने क्यों हैं? क्या पार्टी नेतृत्व इन बयानों को केवल ‘भावनात्मक प्रतिक्रिया’ मानकर टाल देगा, या फिर इस बार डैमेज कंट्रोल से पहले डैमेज स्टडी करेगा?
क्योंकि बात अब व्यक्तिगत आरोपों से आगे बढ़कर संगठन की नींव को हिलाने लगी है। जब मंच पर शेर आपस में लड़ें, तो जनता सिर्फ तमाशा देखती है और भाजपा जैसे प्रतिद्वंद्वी मुस्कराते हैं।

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कांग्रेस के लिए है खतरे की घंटी

कांग्रेस की इस खुली कलह ने पार्टी की रणनीति, अनुशासन और नेतृत्व की परीक्षा फिर से खड़ी कर दी है। लाड़ी और बेहड़ दोनों ही अनुभवी नेता हैं लेकिन जब वही नेता पार्टी के मंच को अखाड़ा बना दें, तो असल सवाल ये नहीं होता कि बब्बर शेर कौन है, सवाल ये होता है कि जनता किसके साथ खड़ी होगी। राजनीति में बहस ज़रूरी है, लेकिन जब बहस बहकने लगे, तो नेता नहीं, दल हारता है।

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