राजेश सरकार
हल्द्वानी। प्रदेश में उचे मंचों से राजनेता गाहे-बगाहे पहाड़ से पलायन न करने की सलाह देते नजर आते है। वही दूसरी तरफ आमजन को पलायन नहीं करने की सलाह देने वाले यही जनप्रतिनिधि स्वंय को राजनैतिक महत्वकांक्षा की पूर्ति के चलते पलायन करते रहे है। और यह सिलसिला राज्य निर्माण के बाद भी बदस्तूर जारी है। राजनेताओं के इस पलायन में ऐसे दिग्गज भी शामिल रहे है जो पहाड़ में पैदा अवश्य हुए हैं लेकिन उन्होंने जन्मभूमि से ज्यादा कर्म भूमि को अधिक महत्व दिया। यहां सवाल यह भी है कि क्या तुच्छ स्वार्थो की पूर्ति हेतु अपनी माटी को तिलांजलि देने वाले ये जनप्रतिनिधि राजनेता कहलवाने का हक रखते है.. राजनेता पहाड़ों से पलायन के प्रति अपनी लाख चिन्ता व्यक्त करें लेकिन यह साफ हो चला है कि मैदानी क्षेत्रों के मोहपाश से वे स्वंय की अछूते नहीं है। तत्कालीन उत्तर प्रदेश से अब तक की यात्रा में कई ऐसे कददावर नाम हैं जो पहाड़ से अपना पीछा छुड़ा कर मैदानी क्षेत्रों से चुनाव लड़ने पहुच गये। वजह चाहे जो हो लेकिन अब जनता यह कहने लगी है कि नेता पहाड़ से पलायन क्या रोकेंगे जब वे खुद ही पलायित होकर मैदानी क्षेत्रों से चुनाव लड़ रहे है
अविभाजित उत्तर प्रदेश में उत्तराखंड के योगदान पर नजर ड़ाले तो नजर आता है कि पहाड़ में पैदा हुई राजनीति के कई वरिष्ट नामों ने भी राजनीति के लिये जन्म भूमि से ज्यादा कर्म भूमि को अधिमान दिया। भारत रत्न गोविन्द बल्लभ पंत अल्मोड़ा निवासी होने के बावजूद लोकसभा व विधानसभा में उन्होंने अल्माड़ा का प्रतिनिधित्व नहीं किया। उनके पुत्र के.सी.पंत ने भी पहाड़ के बजाय दिल्ली से चुनाव लड़ा। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा ने भी इलाहाबाद से चुनाव लड़कर विधानसभा में एंट्री मारी। 1982 में वे पौड़ी लौटे और राष्ट्रीय लोकदल से विजयी रहे। भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी 1977 में अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ सीट से लोकसभा चुनाव जीते। इसके बाद अगला चुनाव हारने के बाद वे इलाहाबाद व बनारस के ही होकर रह गये। इसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत पलायन के ताजा उदाहरण है। 1980,1984 व 1989 में लगातार पिथौरागढ़ – अल्मोड़ा लोकसभा सीट से जितने के बाद रावत 2009 में अचानक हरिद्वार जा पहुचे। अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ संसदीय सीट से 1996, 98, 99 व 2004 में चुनाव जीतने वाले भाजपा के कददावर नेता स्व. बच्ची सिंह रावत 2009 में नैनीताल से चुनाव लड़ने जा पहुचे। इसी क्रम में कांग्रेस नेता विजय बहुगुणा अपनी मूल सीट पौड़ी को छोड़कर टिहरी से 1998, 99 में जीत का स्वाद चखा। अन्य नेताओें में कांग्रेस नेता यशपाल आर्य, रमेश पोखरियाल निशंक, डा. हरक सिंह रावत, सतपाल महाराज की पत्नी अमृता रावत आदि बड़े नाम पलायन के जीते जागते सबूत है।