

फाइटर जेट्स, ड्रोन, और मौत का खेल
एक वक्त था जब ईरान इस्राइल को मान्यता देने वाला दूसरा मुस्लिम देश था। पहलवी शासन के दौरान दोनों के रिश्ते मधुर थे। लेकिन 1979 की इस्लामी क्रांति ने सब बदल दिया। अमेरिका को ‘महान शैतान’ और इस्राइल को ‘छोटा शैतान’ कहा गया। यहीं से शुरू हुआ एक ऐसा संघर्ष, जिसकी आज परमाणु बम की छांव में आग का रंग लिया है।
शुक्रवार सुबह जब लोग अपने रोज़मर्रा की ज़िंदगी में मशगूल थे, उस वक्त आसमान में कुछ और ही खेल चल रहा था। 200 इस्राइली फाइटर जेट्स ने ईरान की ज़मीन पर छह ठिकानों को निशाना बनाया। ये ठिकाने केवल सैन्य अड्डे नहीं थे, बल्कि परमाणु महत्व के केंद्र थे। हमला इतना जबरदस्त था कि ईरान की आर्मी और एयरफोर्स के 20 से ज़्यादा कमांडर मारे गए।
इस हमले में IRGC के प्रमुख हुसैन सलामी की मौत की पुष्टि हुई है। सलामी, ईरान की रिवॉल्यूशनरी गार्ड का वो चेहरा थे, जिन्हें आक्रामक रणनीति के लिए जाना जाता था। उनके साथ ईरान के छह वैज्ञानिक और सैन्य प्रमुख मोहम्मद बाघेरी के मारे जाने की भी खबर है।
ईरान ने इस्राइल पर 100 से ज्यादा ड्रोन दागे। जवाबी हमले में आग, धुआं और खौफ तो था, पर IDF (इस्राइली रक्षा बल) का दावा है कि उसने एक भी ड्रोन को अपनी सीमा में घुसने नहीं दिया।
ड्रोन भले ही लक्ष्य तक नहीं पहुंचे हों, लेकिन ये युद्ध अब प्रतिशोध से आगे, अस्तित्व के सवाल तक पहुंच चुका है। इस्राइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने खुद कहा जब तक खतरा खत्म नहीं होगा, ऑपरेशन चलता रहेगा।
नेतन्याहू का दावा है कि इसे नवंबर 2024 में मंजूरी दी गई थी और इसे अप्रैल 2025 में शुरू किया जाना था, लेकिन हालात ने इसकी घड़ी जून में खींच दी। वजह? ईरान के यूरेनियम भंडार में खतरनाक तेजी से हुआ इज़ाफा।
IAEA की रिपोर्ट कहती है कि ईरान के पास 408 किलो यूरेनियम है जो 60 प्रतिशत संवर्धित है और परमाणु हथियार बनाने के लिए ज़रूरत होती है 90 प्रतिशत संवर्धन की। नेतन्याहू का आरोप है ईरान के पास 9 परमाणु बम बनाने जितना यूरेनियम है। सवाल ये नहीं है कि क्या बम बनेगा, सवाल है कब बनेगा?
बता दे कि इस्राइल का हमला सिर्फ हवाई नहीं था, यह जमीनी जासूसी और तैयारी का महीनों लंबा खेल था। मोसाद के एजेंटों ने तेहरान के पास ईरान की धरती पर ही ड्रोन बेस तैयार किया। हथियारों और मिसाइलों की तस्करी की गई। इस्राइल ने ईरान के वायु सुरक्षा को पहले ही निष्क्रिय कर दिया था।
कहने का मतलब यह सिर्फ हमला नहीं था, यह एक पूर्व नियोजित सैन्य महायोजना थी, जिसे ड्रोन से लेकर मोसाद तक ने अंजाम दिया।
इससे पहले जुलाई 2024 में हमास के राजनीतिक प्रमुख इस्माइल हानिया की तेहरान में हत्या हुई थी। हानिया, उस वक्त ईरानी राष्ट्रपति के शपथ समारोह में शामिल होने आए थे। 5 महीने बाद इस्राइल ने यह हत्या स्वीकार की।
कहा जा सकता है वह प्रक्षेप्य जिसने हानिया को मारा, वही चिंगारी थी जिसने इस युद्ध को जन्म दिया।
इधर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (जिनकी वापसी से अब अंतरराष्ट्रीय राजनीति गर्म है) ने ईरान को चेताया या तो समझौता करो, या और बड़ा हमला झेलो। यह बयान कूटनीतिक कम और धमकी भरा ज़्यादा था। इसका अर्थ स्पष्ट है अमेरिका इस बार खुले तौर पर इस्राइल के साथ खड़ा है।
अब सवाल य़ह है कि क्या यह संघर्ष पूरे मध्य पूर्व को अपनी चपेट में ले लेगा? और सबसे अहम क्या यह परमाणु युद्ध की आहट है?
यह समय सिर्फ युद्ध का नहीं, इतिहास को बदलने का भी है। और हर वो बम जो आज गिर रहा है, सिर्फ एक शहर पर नहीं पूरी सभ्यता पर असर डाल रहा है।
कुल मिलाकर ईरान और इस्राइल का यह युद्ध सिर्फ दो देशों के बीच नहीं है। यह टकराव है विचारधाराओं का, तकनीक का, खुफिया तंत्र का और सभ्यता को विनाश के मुहाने पर ला खड़ा कर देने वाले परमाणु भ्रम का।