

देहरादून: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में एक बार फिर प्रशासनिक हलचल है। अफसरों के बीच कुर्सी की खींचतान, सेवा विस्तार की जद्दोजहद, और सेवानिवृत्ति के बाद की सियासत का ताजातरीन नमूना बना हैं उत्तराखंड वन विकास निगम।
अब तक इस निगम की कमान संभाल रहे प्रमुख वन संरक्षक गिरजा शंकर पांडे 31 जुलाई को सेवानिवृत्त हो गए। पद से विदाई के साथ ही पीछे छोड़ गए चर्चाओं का लंबा सिलसिला ट्रांसफर-पोस्टिंग की खींचतान, कर्मचारियों की तैनाती को लेकर उठे सवाल, और सेवा विस्तार की वो अधूरी ख्वाहिशें जो आख़िरकार विवादों के दलदल में फंसकर दम तोड़ गईं।
अब बारी है समीर सिन्हा की। प्रमुख वन संरक्षक हैं, अनुभवी हैं, और अब वन विकास निगम के प्रबंध निदेशक का अतिरिक्त प्रभार उनके हिस्से आया है। आदेश जारी हो चुके हैं, कुर्सी बदल चुकी है, लेकिन सवाल जस के तस हैं क्या यह सिर्फ एक ‘अस्थायी जिम्मेदारी’ है, या आने वाले समय में यही ‘स्थायी चेहरा’ होगा?
गिरजा शंकर पांडे का कार्यकाल तमाम चर्चाओं में रहा। कर्मचारियों की नियुक्तियों से लेकर विभागीय तबादलों तक, सब कुछ सवालों के घेरे में था। कुछ लोग कहते हैं कि उन्होंने अपने सेवा विस्तार के लिए ‘ऐड़ी-चोटी का जोर’ लगा दिया, लेकिन अंततः जब विवाद बढ़ा, तो सेवा विस्तार की फाइल ठंडे बस्ते में डाल दी गई।
अब बारी है समीर सिन्हा की। लेकिन ये जिम्मेदारी अभी अस्थायी है, अतिरिक्त है। स्थायी प्रबंध निदेशक की नियुक्ति फिलहाल टली हुई है। वजह? जल्द होने वाली सिविल सर्विस बोर्ड की बैठक। सूत्र बताते हैं कि इस बैठक में सिर्फ निगम नहीं, बल्कि डीएफओ से लेकर प्रमुख वन संरक्षक स्तर तक के अधिकारियों की जिम्मेदारियों में फेरबदल हो सकता है।
जैसे-जैसे बोर्ड की बैठक नजदीक आ रही है, चर्चाओं का पारा भी चढ़ रहा है। नीना ग्रेवाल, जो प्रतिनियुक्ति से लौट चुकी हैं, फिलहाल खाली हैं।
बीपी गुप्ता, जिनका नाम पहले भी प्रबंध निदेशक के तौर पर सामने आया था, एक बार फिर विकल्प के तौर पर शासन के पास मौजूद हैं। और भी कुछ नाम हैं जिनकी चर्चा कमरों के भीतर ज़ोरों पर है।
अब समीर सिन्हा के सामने दोहरी चुनौती है एक तरफ निगम की रोज़मर्रा की जिम्मेदारी, दूसरी तरफ उस व्यवस्था को भरोसेमंद बनाना जिसे हाल के वर्षों में कई मोर्चों पर कठघरे में खड़ा किया गया।
उम्मीद यह भी है कि इस बार प्रमुख वन संरक्षक हॉफ को अपनी टीम चुनने का मौका भी मिलेगा ताकि वन विभाग तय लक्ष्यों को टीम भावना के साथ पूरा कर सके। और इस सबके बीच, हम-आप जैसे आम नागरिक यह देख रहे हैं कि कौन अफसर किस कुर्सी पर बैठा, किसे कब बदला गया, और जंगलों का भविष्य इन तबादलों के बीच किस दिशा में जाएगा।