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कभी क्लेम भुगतान में देरी, तों कभी बच्चों के मुफ्त इंसुलिन के टेंडर में देरी होना लोगों के लिये बन रहा है परेशानी का सबब

एसपी अरोड़ा
देहरादून: केन्द्र की सरकार जहां स्वास्थ्य सुविधाओं का दायरा बढ़ाने को लेकर गम्भीर है और इसी के चलते वह 70 साल से अधिक उम्र के व्यक्तियों को 5 लाख रूपये के मुफ्त इलाज की सुविधा देने जा रही है। वही राज्य में जिस पर इन योजनाओं के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी है वही राज्य सरकार व उसका स्वास्थ्य महकमा इन योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर गम्भीर नजर नही आता है। हाल यह है कि राज्य सरकार द्वारा राज्य कर्मचारियों को कैश लैस इलाज की सुविधा मुहैय्या कराने के मददेनजर गोल्डन कार्ड योजना शुरू की, लेकिन क्लेम भुगतान में हो रही देरी के चलते कई अस्पतालों ने गोल्डन कार्ड धारकों के ईलाज से मुह मोड़ना शुरू कर दिया है, इतना ही नहीं 2 वर्ष पूर्व शुरू की गयी मुफ्त इंसुलिन की सुविधा भी तीन माह से बंद पड़ी है जिसके चलते राज्य के 500 बच्चें इस फ्री इंसुलिन के अभाव में जिन्दगी की जंग लड़ रहे है।
गौरतलब है कि केन्द्र की मोदी सरकार 70 से अधिक आयु के व्यक्तियों को सालाना 5 लाख रूपये के मुफ्त ईलाज का तोहफा देने जा रही है। उत्तराखंड में करीब 9.60 लाख से अधिक बुजुर्ग इस योजना से लाभांवित होगें। केन्द्रीय कैबिनेट के इस निर्णय के बाद 70 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्तियों को पांच लाख रूपये का ईलाज की सुविधा अलग से मिलेगी। केन्द्र सरकार द्वारा उठाये गये इस कदम से बुजुर्गों को तो लाभ मिलेगा ही साथ ही परिवार के कम आयु के सदस्यों के ईलाज की राशि पर भी इसका असर नहीं पड़ेगा। राज्य में अटल आयुष्मान योजना के तहत अब तक 70 वर्ष से अधिक के 3.83 लाख व्यक्तियों के कार्ड बन चुके है। केन्द्र सरकार द्वारा बुजुर्गों को 5 लाख तक के ईलाज की मुफ्त सेवा उपलब्ध करा कर स्वास्थ्य सेवा प्रदाता के रूप में लम्बी लकीर खीच दी है। वही दूसरी तरफ राज्य सरकार द्वारा प्रदान की जा रही स्वास्थ्य योजनाओं की बात करें तो राज्य सरकार द्वारा इस क्षेत्र में पहल अवश्य की गयी है, लेकिन तंत्र में व्याप्त खामियोें के चलते राज्य सरकार की ये सुविधाये आमजन के लिये सुविधा की बजाय परेशानियों का सबब अधिक साबित हो रही है। राज्य सरकार द्वारा अपने कर्मचारियों को गोल्डन कार्ड के तहत उपलब्ध करायी गयी स्वास्थ्य सेवा इसका जीता जागता उदाहरण है, हाल यह है कि राज्य सरकार स्वास्थ्य योजना (एसजीएचएस) में सूची बद्ध निजी अस्पतालों ने क्लेम भुगतान में हो रही देरी के चलते गोल्डन कार्ड धारकों के इलाज में आनाकानी करनी शुरू कर दी है। शहर के ही एक निजी अस्पताल श्री मंहत इंदिरेश ने बकाया भुगतान में हो रही देरी के चलते इस योजना के तहत ईलाज देना बंद कर दिया है। बताया जा रहा है कि अस्पताल का करीब 15 करोड़ रूपये से अधिक का भुगतान लंबित पड़ा है। अस्पताल द्वारा उठाये गये इस कदम से डायलिसिस कराने वालों के साथ ही अन्य गम्भीर मरीजों के सामने भी बड़ी समस्या आ खड़ी हुयी है। राज्य सरकार द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर प्रदत्त योजनाओं में व्याप्त अव्यवस्थाओं का सफर यही पर समाप्त नहीं होता है। करीब दो साल पूर्व राज्य में डायबिटीज टाइप-1 में शामिल बच्चों के लिये निःशुल्क इंसुलिन की व्यवस्था की गयी थी। लेकिन बीते तीन माह से यह सुविधा भी पूरी तरह बंद पड़ी हुयी है। राज्य में करीब 500 बच्चे इस सुविधा का लाभ ले रहे थे, लेकिन अचानक इस सुविधा के बंद होने से उनके आगे दिक्कत आ खड़ी हुयी है। खासकर आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को बाजार से यह इंसुलिन खरीदनी पड़ रही है। डायबिटीज पीड़ित बच्चों के लिये काम करने वाली एक संस्था के अनुसार डायबिटीज से पीड़ित बच्चों के नियमित रूप से इंसुलिन का मिलना जरूरी है ऐसा न होने पर उनके स्वास्थ्य पर गम्भीर प्रभाव पड़ सकता है। जिस में आखों की समस्या, किडनी खराब होने जैसी अन्य दिक्कतों का उन्हें सामना करना पड़ सकता है। बच्चों को मुफ्त में दी जाने वाली यह डिग्लुडेक व एस्पार्ट इंसुलिन के बंदी के पीछे टेंडर में देरी होना बताया जा रहा है। बहरहाल खामियां किसी भी स्तर से हो उनका खामियाजा तो जनता को ही भुगतना पड़ता है।

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