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एनएच-74 मुआवजा घोटाला: फिर बाहर निकला घोटाले का जिन्न

संजय रावत

देहरादून: राजधर्म भूलकर जब सिस्टम बेशर्म हो जाए, तो घोटाले भी बेशर्मी से दोबारा जन्म लेते हैं।
उत्तराखंड का बहुचर्चित एनएच-74 मुआवजा घोटाला एक बार फिर सुर्खियों में है। गुरुवार सुबह, जब शहर की सड़कें नींद से बाहर निकल रहीं थीं, तब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की टीम ने पीसीएस अधिकारी दिनेश प्रताप सिंह के देहरादून स्थित आवास सहित 9 ठिकानों पर छापेमारी की कार्रवाई शुरू की।
ईडी की यह कार्यवाही सिर्फ एक छापा नहीं, बल्कि वर्षों से दबाई गई फाइलों की नई तफ्तीश का आगाज़ है। ऐसा लगता है जैसे इस बार ये घोटाला न सिर्फ पुराने चेहरे बेनकाब करेगा, बल्कि सिस्टम की उन अदृश्य दीवारों को भी चीर देगा जिनके सहारे भ्रष्टाचार फलता-फूलता है। बता दे कि एनएच-74 के चौड़ीकरण के लिए 2011 से 2016 के बीच काशीपुर, बाजपुर, गदरपुर, जसपुर जैसे क्षेत्रों में किसानों से भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हुई। लेकिन मुआवजा देने के नाम पर जमीन को कृषि से वाणिज्यिक श्रेणी (143) में दिखाकर करोड़ों का खेल रच दिया गया। जिस भूमि की असल कीमत 2-3 लाख रुपये प्रति बीघा थी, उसकी दस्तावेज़ी कीमत 20-25 लाख प्रति बीघा दिखाकर अनुमानित घोटाला 300- 400 करोड़ रुपये पहुचा दिया गया। इस मामले में लेखपालों, राजस्व अधिकारियों, दलालों और पीसीएस अफसरों की मिलीभगत सामने आई। 2017 में बनी एसआईटी ने इस मामले में 30 से अधिक गिरफ्तारियाँ कीं थी।
पीसीएस दिनेश प्रताप सिंह ने नवंबर 2017 में सरेंडर किया। 14 महीने जेल में रहे, फिर जमानत पर बाहर आए। इसके बाद कहानी वही पुरानी जांच ठंडी, सियासत गर्म। शासन ने विभागीय जांच में क्लीन चिट दे दी। जब न्यायालय ने मुकदमा वापस लेने का प्रयास देखा, तो शासन को फटकार लगाई और केस वापसी की अनुमति ठुकरा दी।
अब फिर से ईडी की एंट्री हुई। देहरादून, बरेली और शाहजहांपुर तक फैली छापेमारी। पीसीएस अफसर के पास मिली पुरानी फाइलें, बैंक ट्रांजेक्शन डिटेल्स, और रजिस्ट्री रिकॉर्ड जिनमें मनी लॉन्ड्रिंग और घूसखोरी के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक, कई लेन-देन सीधे मुआवजा वितरण से जुड़े हैं, और इन्हीं कड़ियों को जोड़ने की कोशिश में ईडी जुटी हुई है।
ईडी की छापेमारी से तीन दिन पहले ही दिनेश प्रताप सिंह को डोईवाला शुगर मिल से हटाकर उत्तराखंड आवास एवं नगर विकास प्राधिकरण में संयुक्त मुख्य प्रशासक बनाया गया।
यह पद जहाँ नए प्रोजेक्ट्स की लाइन लगी है माना जा रहा था कि ‘कमाई की मशीन’ है। और सूत्रों की मानें तो, इस तैनाती के पीछे सत्ता पक्ष के एक बड़े नेता का हाथ था।
लेकिन जैसे ही पीसीएस अधिकारी कुर्सी पर बैठने की तैयारी में थे, ईडी की दस्तक उनके सारे ख्वाबों को चकनाचूर कर गई।
आज राजपुर रोड स्थित आवास पर जब ईडी पहुंची, तो फोन ज़ब्त, दरवाज़े बंद, पर्दे गिरा दिए गए और पुलिस का पहरा बिठा दिया गया।
घर के अंदर चल रही छानबीन की झलक न मिले पर आस-पड़ोस की छतों से जनता अपनी निगाहें जमाए हुए थी।
सूत्रों की मानें, तो ईडी ने परिवार के लोगों से भी पूछताछ की और कई अहम दस्तावेजों को जब्त किया है।
ईडी की इस कार्रवाई ने वो संदेश दे दिया है, जो वर्षों से दबा था यह मामला खत्म नहीं हुआ है, बल्कि अब असली जांच शुरू होने जा रही है।
अगर ईडी को मिले बैंक रिकॉर्ड, रजिस्ट्री और लेन-देन सही साबित हुए, तो यह घोटाला सिर्फ एक अफसर तक सीमित नहीं रहेगा।
सिस्टम, सियासत और प्रशासन तीनों की मिलीभगत की पोल खुल सकती है। कुल मिलाकर अब सवाल य़ह उठता है कि जब सिस्टम खुद आरोपियों को क्लीन चिट देता है और न्यायालय फटकार लगाता है, तो क्या यह सिर्फ ‘एक अफसर की गलती’ है या फिर पूरा तंत्र ही बीमार है? क्या उत्तराखंड में सड़कें सिर्फ चौड़ी हुई हैं, या भ्रष्टाचार की गली भी और गहरी बन गई है?
जब फाइलें दबा दी जाती हैं, तो क्या वे सच में दफन होती हैं, या सिर्फ समय का इंतज़ार कर रही होती हैं?

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