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न्यायपालिका: राष्ट्रीय न्याय डेटा ग्रिड के आंकड़े बया कर रहे हाल

दिल्ली: विभिन्न उच्च न्यायालयों में लगभग 62 हज़ार ऐसे मामले लंबित है, जो 30 वर्ष से अधिक पुराने है। इनमें से 3 मामलें 1952 से ही निपटारे की प्रतीक्षा में है।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, उच्च न्यायालयों में 1954 से 4 मामलें और 1955 से 9 मामलें लंबित है। वर्ष 1952 से लंबित 3 मामलों में से 2 कलकत्ता उच्च न्यायालय में और एक मद्रास उच्च न्यायालय का है। इस सप्ताह की शुरूआत में जिला न्यायपालिका के राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने न्यायपालिका में “स्थगन मांगने की संस्कृति” में बदलाव का आह्वान किया था। उन्होंने कहा था कि लंबे समय से लंबित मामले न्यायपालिका के समक्ष एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा “सभी हितधारकों को इस समस्या को प्राथमिकता देकर इसका समाधान ढूंढ़ना होगा।” राष्ट्रीय न्याय डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) के अनुसार उच्च न्यायालयों में लगभग 2.45 लाख मामलें लंबित है, जो 20 से 30 वर्ष पुराने है। इसी कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस धारणा को तोड़ने का आह्वान किया था कि भारतीय अदालतें ” तारीख पे तारीख संस्कृति” का का पालन करती है। उन्होंने कहा कि विधि मंत्रालय ने विश्लेषण किया कि 5, 10, 15, 20 और 30 साल के मामलें लंबित है उन्होंने कहा था कि एनजेडीजी पर उल्लिखित लंबित मामलों के विश्लेषण से पता चलता है कि मुकदमेबाजी में शामिल पक्ष या तो उपस्थित नहीं होते है या मामलें को आगे बढ़ाने में रुचि नहीं रखते है। उन्होंने कहा कि ऐसे 25 से 30 प्रतिशत मामलों को एक बार में ही बंद किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में कुछ उच्च न्यायालयों ने प्रभावी कदम उठाए है। जिला अदालतों, उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय समेत विभिन्न अदालतों में 5 करोड़ से अधिक मामलें लंबित है।

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