वर्ष-2021 की संशोधित खनन नीति को हाईकोर्ट ने माना था टूजस्पेक्ट्रम जैसा घोटाला
संजय झा
देहरादून। दो हजार करोड़ से अधिक के खनन घोटाले के जिस मामले में हाईकोर्ट ने प्रदेश की खनन नीति को रद्द कर दिया था और सिस्टम पर गंभीर सवाल खड़े किए थे, उस मामले में सरकार ने यू टर्न ले लिया है। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी तो दायर की गयी, परन्तु अचानक उसे वापस ले लिया गया है। एसएलपी वापस लेने का मतलब यही सरकार ने भी मान लिया है कि पुरानी नीति में कमी थी और वास्तव में सरकारी राजस्व का नुकसान हुआ है। लेकिन सवाल यह है कि दो हजार करोड़ के नुकसान की भरपाई कौन करेगा? क्या इसकी जिम्मेदारी तय की जाएगी? सवाल यह भी है कि प्रदेश में ऐसा खेल कब से चल रहा है? दरअसल, 28 अक्टूबर 2021 को तत्कालीन राज्य सरकार ने खनन नीति में एक बड़ा संशोधन करते हुए निजी नाप भूमि पर समतलीकरण, रीसाइक्लिंग टैंक, मत्स्य तालाब निर्माण आदि कार्यो को खनन की परिभाषा से बाहर कर दिया था। संबंधित भू मालिक को 70 सें 85 रूपये प्रति टन की रायल्टी पर खनन सामग्री बेचने का भी अधिकार दे दिया गया। सरकार के इस फैसले के खिलाफ हल्द्वानी निवासी सत्येंद्र तोमर ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की। खुद को खनन कारोबारी बताते हुए सत्येंद्र तोमर ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि सरकार की संशोधित नीति के कारण जहां खनन कारोबारियों को रॉयल्टी के रूप में चार सौ गुना अधिक ( 460 से 500 रूपये प्रति टन रॉयल्टी) जमा कराना पड़ रहा है, वहीं महंगा होने के कारण उसकी खनन सामग्री कोई नहीं खरीद रहा है। दूसरी तरफ निजी जमीन वाले सरकार को मामूली राजस्व (70 से 85 रूपये प्रति टन) देकर अपनी जमीन की खनन सामग्री बेच रहे है। इससे सरकार को प्रति वर्ष दो हजार करोड़ से अधिक का राजस्व नुकसान हो रहा है। मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ति विपिन सांधी व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने 26 सितम्बर 2022 को इस मामले को सुना और याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओं के तर्को से सहमत होते हुए राज्य सरकार द्वारा संशोधित खनन नीति ( 28 अक्टूबर 202 ) को रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की इस तर्क को भी मान लिया था कि यह टू जी स्पेक्ट्रम की तरह का घोटाला है।