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पहाड़ में पहुंचा ‘एलयूसीसी घोटाला’, अब सीबीआई के भरोसे न्याय!

देहरादून: जब सरकारें ‘डबल इंजन’ की बात करती हैं, तब जनता को लगता है कि उनके जीवन की गाड़ी भी डबल रफ्तार से चलेगी। लेकिन उत्तराखंड में ‘एलयूसीसी’ नाम की एक कंपनी ने कुछ और ही डबल करके दिखाया, शातिरो ने जनता की जमा पूंजी डबल ठग ली।
वर्ष 2014 में शुरू हुई एलयूसीसी (लोनी अर्बन मल्टी स्टेट क्रेडिट थ्रिफ्ट कोऑपरेटिव सोसाइटी) नाम की ये कंपनी कोई फिल्मी विलेन नहीं थी, लेकिन स्क्रिप्ट कमाल की लिखी। ‘ब्याज ज्यादा मिलेगा’, ‘पैसा डबल होगा’, ‘रिटर्न शानदार होगा’ और हुआ ठीक इसके उल्ट कि विश्वास डबल गुम हो गया। पहाड़ के दूरदराज गांवों में, जहां बैंक एक सपना है और एटीएम एक अफवाह, वहां इस कंपनी ने भरोसे का धंधा शुरू किया। और जब वर्ष 2023 आया, तो कंपनी के कर्ता-धर्ता करोड़ों रुपये लेकर ऐसे गायब हो गए जैसे उत्तराखंड में सरकारी अस्पतालों से डॉक्टर। अब सीबीआई जांच होगी हां, वही सीबीआई जो पहले से ही इतनी व्यस्त है कि जांच की तारीखों को भी वेटिंग में डालना पड़ता है।
बता दें कि इस मामले में राज्यभर में अब तक 13 मुकदमे दर्ज हो चुके हैं पौड़ी में 4, टिहरी में 4, देहरादून में 2, रुद्रप्रयाग में 2 और उत्तरकाशी में 1और ये वो मामले हैं जो पुलिस तक पहुंचे हैं, वरना अभी कितने ऐसे लोग तो अब भी भरोसे के इंतजार में अपने घरों में बैठे हैं। अंदेशा है कि इस ठगी का आंकड़ा 189 करोड़ रुपये के पार जा चुका है। यानी इतना पैसा, जितने में किसी पहाड़ी जिले में 50 प्राइमरी स्कूल खोले जा सकते थे। लेकिन अफसोस, खोली गई सिर्फ जेबें और वो भी गरीब तबके की। इस पूरे मामले को लेकर सांसद अनिल बलूनी, माला राज्यलक्ष्मी शाह, त्रिवेंद्र सिंह रावत और अजय भट्ट केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिले, और उन्होंने पूरे घटनाक्रम से गृह मंत्री को अवगत कराया, इसी के साथ य़ह भी अनुरोध किया गया कि कम्पनी के शातिरो को इंटरपोल के जरिये देश लाया जाए और उन्हें कड़ी सजा दी जाए। गृह मंत्री अमित शाह ने सभी सांसदों को आश्वासन दिया कि इस मामले में कड़ी कार्रवाई अमल में लायी जायेगी।
अब यहाँ गौर करने वालीं बात य़ह है कि एक रजिस्टर्ड कोऑपरेटिव सोसाइटी, जिस पर आरबीआई या एसईबीआई की सीधी नजर नहीं होती, उसे ग्रामीण भारत में बैंक का विकल्प मान लिया जाता है। न सरकार के पास निगरानी तंत्र है, न जनता के पास जानकारी। बस वादों के पोस्टर हैं और एजेंटों की चिकनी बातों का मायाजाल। इस मामले में कम्पनी ने कुछ निवेशकों को शुरुआत में पैसा वापस देकर जो भरोसा पैदा किया गया, वही भरोसा आगे चलकर घोटाले का बीज बना।
एलयूसीसी घोटाला बताता है कि जब सरकारें वित्तीय साक्षरता को गंभीरता से नहीं लेतीं और नियामक एजेंसियां रिएक्टिव मोड में काम करती हैं, तब चिटफंड कंपनियां सक्रिय होकर जनता को चूस लेती हैं।
अब यहाँ सवाल उठता है कि क्या इस बार पहाड़ के लोग सिर्फ वादों से बहलाए जाएंगे या उनके पैसे वाकई वापस मिलेंगे? या फिर ये भी ‘भविष्य की सरकार के लिए छोड़ा गया एक पुराना घाव’ बन जाएगा?

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