ख़बर शेयर करें -

हल्द्वानी। राज्य की धामी सरकार प्रदेश में सख्त भू-कानून लागू कराने के बेशक दावे कर रही हो, लेकिन मौजूदा वक्त में जिस तेजी से भू-माफिया जमीनों की खरीद-फरोख्त व सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जों की घटनाओं को अंजाम दे रहे है, वह प्रदेश सरकार के सख्त भू- कानून की कवायद को आईना दिखा रहा है।
भू-माफियाओं ने अब पहाड़ के हरे-भरे जंगलों को अपना टार्गेट बनाना शुरू कर दिया है, और अब ये लोग पहाड़ के जंगलो को भी बेचने लगे है। अल्मोड़ा की पहाडियों के पास जंगलों में लगे ‘लैंड फार सेल’ के बोर्ड भू-माफियाओं के दुस्साहस को दर्शा रहे है।
भू-माफियाओं को न केवल नियम कानून का ही कोई खौफ है और न ही किसी प्रकार की कार्यवाई की चिंता। उत्तराखंड की पहाड़ी क्षेत्रों में एक सोची समझी साजिश के साथ भू-माफिया द्वारा खेले जा रहे इस खेल के पीछे नौकरशाह, नेताओं व भू-माफिया का ऐसा गठजोड काम कर रहा है, जो यहां की सरकारी गैर सरकारी जमीनों को खुर्द बूर्द करने पर आमदा है। भू-माफिया लचर भू-कानून का फायदा उठाकर अल्मोड़ा के रानीखेत, मजखाली, लमगडा, कौसानी व बिनसर में बाहरी लोगों को काबिज कराने का खेल, खेल चुका है। अब उसकी नजर जंगलों से लगी नाप भूमि व राष्ट्रीय राजमार्ग से लगी जमीनों पर है। रानीखेत-अल्मोडा राष्ट्रीय राजमार्ग पर इन दिनों जमीनों की खरीद-फरोख्त का काम धड़ल्ले से संचालित हो रहा है। बताया जा रहा है कि माफिया द्वारा जंगलों की जमीन को नाप खेत बताकर बाहरी लोगों को महंगे दामों पर बेचा जा रहा है। इतना ही नहीं वन भूमि में कई स्थानों पर होटल, होम स्टे, रिसॉर्ट तक संचालित किए जा रहे है। यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि वे कौन लोग है जो पहाड़ के जंगलों को अपना बताकर वहां की जमीनों को बेचने की हिमाकत कर रहे है। इतना ही नही जंगल की जमीन की राजस्ट्री कैसे हो जा रही है। फिर जंगल में नाप भूमि कैसे हो सकती है। सबसे बड़ी बात वन विभाग व प्रशासन इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी कार्यवाई से क्यों कतरा रहा रहा है? सरकारी जमीनों को बेचे जाने के इसी क्रम में आंकड़े बताते है कि उत्तराखंड की नदियों और नालों के किनारे 29 हजार एकड़ से ज्यादा जमीन पर अवैध कब्जे है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालाय की बेवसाइट भी उत्तराखंड में वन भूमि पर बढ़ते मामलो की पुष्टि करती है। मंत्रालय के वेवसाइट ने हिमालयी राज्यों में वन अतिक्रमण के मामलों में उतराखंड को तीसरा स्थान दिया है। इसके अलावा वन विभाग के अनुसार सब से ज्यादा अतिक्रमण शीतला, नंदौर, यमुना, टोस, सहस्त्रधारा, मालना, गंगा, रिस्पना, कोसी, सुखरो, गौला नदी व माल देवता के किनारों पर हुआ है। विभाग बताता है कि प्रदेश में तमाम नदियों के किनारे 30 से 40 फीसदी भूमि पर अवैध कब्जा किया गया है। राजधानी देहरादून में भी सरकारी जमीनो पर भू-माफिया द्वारा क़ब्ज़ा ज़माने व उन्हें खुर्द-बुर्द करने की घटनाओं में अव्वल स्थान पर है। बताया जा रहा है कि यहां सरकारी जमीनों को खुर्द-बुर्द कर उस जमीन पर बाहरी लोगों को बसाये जाने की घटनायें लगातार बढ रही है। जानकारों का मानना है कि इससे न केवल जनसंख्या संतुलन में बदलाव आ रहा है, बल्कि देवभूमि के सनातन स्वरुप भी खतरे में पड़ रहा है।

Advertisement
Ad Ad Ad Ad Ad Ad
यह भी पढ़ें 👉  बाबा तरसेम सिंह हत्याकांड का मास्टर माइंड समेत 4 गिरफ्तार

Comments

You cannot copy content of this page