

भीमताल की छात्रा की मौत ने ग्राफिक एरा यूनिवर्सिटी की व्यवस्था पर खड़े कर दिए गंभीर सवाल
हल्द्वानी। लखनऊ से 18 साल की एक होनहार बेटी, वाश्वी तोमर जिसे उसके पिता ने देवभूमि भेजा था एक अच्छे भविष्य के लिए, पढ़ाई के लिए, सपनों के लिए। लेकिन यह जगह, जहां लोग तप और आस्था के लिए आते हैं, वहां एक यूनिवर्सिटी में उसकी मौत की खबर आई। और उसके साथ आई एक लंबी चुप्पी, एक गहरी चुप्पी जिसमें सिर्फ सवाल हैं, जवाब नहीं।
ये मौत नहीं है सिर्फ, ये भरोसे की हत्या है। वो भरोसा जो मां-बाप करते हैं अपने बच्चों को इन भारी-भरकम यूनिवर्सिटी ब्रांडों में भेजते वक्त। सोचते हैं यहाँ क्लास होगी, करियर बनेगा, सुरक्षा मिलेगी। पर ये किस तरह की सुरक्षा है जहाँ एक छात्रा बार-बार बताती है कि उसे रैग किया जा रहा है, वीडियो भेजती है, और उसके बाद भी कोई सुनवाई नहीं होती?
वाश्वी बीसीए की छात्रा थी, नियमित क्लास जाती थी। उसने खुद वीडियो बनाया और भेजा कि सीनियर्स रैग कर रहे हैं। पिता रामकृष्ण सिंह तोमर ने कहा मैंने बेटी से कहा था कि ये वीडियो वार्डन को दिखाओ। लेकिन सवाल अब यह है क्या वार्डन ने वह वीडियो देखा? अगर देखा, तो फिर क्या कार्रवाई हुई? वीडियो अगर वार्डन के पास था, तो वाश्वी आज जिंदा क्यों नहीं है? मौत की पटकथा पहले लिखी जा चुकी थी?
ये घटना दिन के 2–3 बजे के बीच की बताई जा रही है, लेकिन परिवार को सूचना दी गई शाम 5:15 बजे के बाद। इस बीच यूनिवर्सिटी ने क्या किया? शव को पुलिस के पहुंचने से पहले फंदे से क्यों उतारा गया? क्या ये सीधा-सीधा सबूतों से छेड़छाड़ नहीं है? वार्डन गायब है, कोई औपचारिक बयान नहीं। यूनिवर्सिटी की चुप्पी चुभती है।
2001 और 2007 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले हों या 2009 की यूजीसी गाइडलाइंस का हर आदेश कहता है कि हर कॉलेज में एंटी-रैगिंग सेल बनाना ज़रूरी है। शिकायत मिलते ही 24 घंटे के भीतर कार्रवाई होनी चाहिए। तो फिर सवाल ये उठता है कि क्या ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी में एंटी-रैगिंग सेल है?क्या शिकायत पर तुरंत जांच हुई?
क्या वीडियो को सबूत मानते हुए गंभीरता दिखाई गई? क्या हॉस्टल वार्डन ने उस छात्रा से बात की?
अगर इनका जवाब नहीं है तो ये लापरवाही नहीं आपराधिक उदासीनता है। स्थानीय लोगों और छात्र संगठनों ने मांग की है कि रैगिंग वाले वीडियो की फॉरेंसिक जांच हो और इसे सबूत के तौर पर संरक्षित रखा जाए। यूनिवर्सिटी प्रबंधन पर आपराधिक मामला दर्ज किया जाए।
हॉस्टल वार्डन की भूमिका की न्यायिक जांच हो। यूजीसी और राज्य सरकार इस मामले पर तत्काल संज्ञान लें। क्योंकि य़ह कहानी एक बेटी की नहीं, हर उस घर की है जहाँ सपना पल रहा है।
यह खबर नहीं, एक आईना है। जो हमें दिखाता है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था में कितनी दरारें हैं। वो लड़की जिसने कभी उम्मीदों की चिट्ठी लिखी होगी अपने घर से दूर, उसे शायद अंदाजा नहीं था कि उसके हिस्से सिर्फ खामोशी आएगी।
और जब सवाल पूछे जाते हैं, तो यही कहते हैं जांच चल रही है।
तारीख बदलती है, लेकिन सिस्टम नहीं। कैमरे की लाइट ऑफ होते ही फाइलें ठंडी हो जाती हैं। पर कुछ परिवारों के आंसू कभी नहीं सूखते। सवाल पूछना बंद मत कीजिए, क्योंकि जवाब अभी बाकी हैं…