

बच्चों की सेहत से खिलवाड़, पर जवाबदेही शून्य, क्या नोटिसों से जिंदा हो उठेगा भरोसा?
देहरादून: हरिद्वार के बहादराबाद क्षेत्र के ग्राम सलेमपुर महदूद से आई तस्वीरें सिर्फ एक गांव की नहीं, एक बीमार व्यवस्था की एक्स-रे रिपोर्ट हैं। पंचायत घर परिसर में संचालित आंगनबाड़ी केंद्र से एक्सपायर्ड आयरन की गोलियां और मुख्यमंत्री पोषण योजना के तहत वितरित किया जाने वाला सड़ा दूध मिलने के बाद गांव में हड़कंप मचा हुआ है लेकिन सरकारी फाइलों में सन्नाटा है।
सवाल ये नहीं कि ये दवाएं और दूध खराब क्यों थे। सवाल ये है कि क्या ये कभी बच्चों तक पहुंचे भी थे या फिर पोर्टल पर कागज़ी वितरण दिखाकर असल माल कबाड़ में डाल दिया गया? क्या लाभार्थियों के नाम फर्जी थे? क्या उनकी मौजूदगी भी केवल कागज़ों पर थी?
स्थानीय लोग आरोप लगा रहे हैं कि केंद्र महीनों से अक्सर बंद रहता है, फिर भी सरकारी पोर्टल पर 100 प्रतिशत वितरण की झूठी चमक है। आंगनबाड़ी व स्वास्थ्य विभाग की इस लापरवाही के बाद न कोई एफआईआर, न निलंबन सिर्फ नोटिस जारी करके खानापूर्ति की जा रही है।
अब ग्रामीण स्वतंत्र ऑडिट और उच्च स्तरीय जांच की मांग कर रहे हैं क्योंकि यह केवल लापरवाही नहीं, बच्चों की जान से खेला गया खेल है। लेकिन शायद अफसरशाही को फर्क नहीं पड़ता। कागज़ों में सब ‘ठीक’ है, योजनाएं ‘सफल’ हैं, और सिस्टम ‘सक्रिय’ है। कुल मिलाकर जब सिस्टम सड़ जाता है, तो बदबू सिर्फ एक गांव से नहीं आती, पूरे समाज को लगती है।
यह सिर्फ सलेमपुर की कहानी नहीं है यह उस सिस्टम की पहचान है, जो नोटिस से ज़्यादा कुछ देने की कुव्वत नहीं रखता।