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बलविन्दर कौर की गुहारः ‘घर छीन लिया, इंसाफ अब भी रास्ते में है’

देहरादून: क्या एक आम महिला को अपने ही घर में रहने के लिए भी अदालत, प्रशासन, पुलिस और मानवाधिकार आयोग के दरवाज़े पर घिसट-घिसट कर जाना पड़ेगा? क्या इंसाफ अब सिर्फ किताबों और भाषणों की चीज़ बन गया है? ये सवाल खुद में एक कराह की तरह उठते हैं जब बलविन्दर कौर जैसी महिला देहरादून स्थित प्रेस क्लब में कैमरों के सामने टूटती हुई खड़ी होती हैं।
देहरादून के प्रभु कॉलोनी, अमर भारती चन्द्रबनी की रहने वाली बलविन्दर कौर की कहानी दर्द, गुस्से और सिस्टम की संवेदनहीनता से भरी है। उन्होंने बताया कि बृजपाल सिंह नाम के व्यक्ति ने अपने साथियों आशीष पुंडीर, सचिन राणा, नील ध्यानी सहित एक पूरी गैंग के साथ 3 मार्च की सुबह 6:45 बजे छत से घुसकर उनके घर पर कब्जा कर लिया।
बलविन्दर कहती हैं, “मेरे पास रजिस्ट्री है, उनके पास सिर्फ 100 रुपये का नोटरी स्टाम्प… फिर भी मेरा घर चला गया। और मैं अब दर-दर की ठोकरें खा रही हूं।”

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पुलिस कहती है ‘सिविल मामला’ लेकिन क्या लूटपाट भी सिविल होती है?

पुलिस, प्रशासन, सीएम पोर्टल, पीएम पोर्टल और यहां तक कि मानवाधिकार आयोग तक शिकायतों की झड़ी लगा दी गई। पर हर जगह एक ही जवाब मिला “यह सिविल मामला है।”
बलविन्दर सवाल उठाती हैं “अगर दिन-दहाड़े घर में घुसकर सामान लूटा जाए, कब्जा किया जाए, और कोई न्यायिक आदेश भी ना हो तो क्या वो सिविल मामला है?”
बलविन्दर के पास घटना की सीसीटीवी फुटेज है। फिर भी थाना पटेलनगर से न तो एफआईआर दर्ज हुई, न ही कोई गिरफ्तारी। उल्टा, जिन लोगों पर पहले से अवैध कब्जों के केस दर्ज हैं, उन्हीं को पुलिस का समर्थन मिलता दिख रहा है।

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“क्या कानून सिर्फ माफियाओं के लिए है?”

बलविन्दर की चीख में सिर्फ उनका दर्द नहीं, बल्कि एक सवाल भी है जो हर आम इंसान के दिल में है “क्या कानून सिर्फ माफियाओं के लिए है? आम नागरिक जाए तो जाए कहां?”
बलविन्दर कहती हैं कि अगर अब भी न्याय नहीं मिला, तो जन आंदोलन का रास्ता अपनाने के अलावा और कोई चारा नहीं बचेगा। उनका साफ कहना है, “ये लड़ाई सिर्फ मेरे लिए नहीं है, हर उस इंसान के लिए है जो सिस्टम के इस दोहरे चेहरे से जूझ रहा है।”
अब यहां सवाल ये नहीं कि बलविन्दर कौर को इंसाफ मिलेगा या नहीं, सवाल ये है कि आखिर इंसाफ का रास्ता आम आदमी के लिए इतना लंबा और इतना तकलीफदेह क्यों है?

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