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ऑनलाइन पढ़ाई का बोझ बच्चों पर भी आफ़त

देहरादून: बारिश सिर्फ़ आसमान से गिरता पानी नहीं है। ये कई बार उन ज़िंदगियों पर टूटती है जो मजबूरी के बोझ तले, भीगे जूतों और कंपकंपाते कपड़ों में स्कूल की ओर बढ़ती हैं। सड़कों पर जलभराव है, हवा चल रही है, बिजली कड़क रही है, और एक महिला शिक्षक जो सुबह की पहली चाय भी ठीक से नहीं पी पाई रिक्शा या स्कूटी पर बैठकर स्कूल की ओर निकल पड़ी है। क्योंकि स्कूल ने आदेश दिया है बच्चों की छुट्टी है, शिक्षकों की नहीं।
और ये वही दिन होता है, जब देहरादून के जिलाधिकारी छुट्टी का आदेश जारी कर चुके होते हैं भारी बारिश के चलते सभी स्कूल बंद रहेंगे। सभी यानी? सरकारी स्कूलों में तो छुट्टी लागू हो जाती है, लेकिन निजी स्कूल? उनका अपना मौसम विभाग है, अपनी नैतिकता है, और अपनी प्रोफेशनलिज़्म की परिभाषा।
नेशनल एसोसिएशन फॉर पेरेंट्स एंड स्टूडेंट्स राइट्स के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरिफ ख़ान इस पर सवाल उठाते हैं क्या शिक्षक इंसान नहीं होते? क्या उनका भीगना, उनकी तबीयत बिगड़ना, उनका रास्ते में फिसलकर गिर जाना, या किसी बिजली के खंभे से करंट लगना क्या ये सिर्फ़ एक ‘कोलैटरल डैमेज’ है?
आरिफ ख़ान ने देहरादून के जिलाधिकारी को एक पत्र लिखा है। शब्दों में गुस्सा है, सवाल है, और उन तमाम शिक्षकों की आवाज़ है जो छुट्टी के दिन भी काम पर बुला ली जाती हैं। जिनके लिए ‘बारिश की छुट्टी’ सिर्फ़ एक छलावा बन चुकी है।
पत्र में साफ़ कहा गया है कि अधिकतर निजी स्कूलों में महिला शिक्षक होती हैं, और भारी बारिश में जब उन्हें आने के लिए मजबूर किया जाता है, तो वे चाहे जितना भी इंतज़ाम कर लें, भीगना तय है। और फिर उसी हालत में, पूरे दिन काम करना क्या ये किसी भी मानवीय दृष्टिकोण से ठीक है?
अब आप सोचिए, वो शिक्षिका जो सुबह आठ बजे स्कूल पहुँची, उसके पैर की उंगलियाँ पानी में सिहर रही हैं, गीले कपड़े शरीर से चिपके हुए हैं, जिसके चलते स्वास्थ्य खराब होने की संभावना बनी हुई है। क्या ये सिर्फ़ ‘ड्यूटी’ है, या ‘दुःख की ड्यूटी’?
आरिफ ख़ान का तर्क है यदि ज़िला प्रशासन ने छुट्टी घोषित कर दी है और इसके बावजूद कोई निजी स्कूल शिक्षकों को बुलाता है, तो अगर कोई दुर्घटना होती है, ज़िम्मेदारी स्कूल की होगी। ये सिर्फ़ एक प्रशासनिक मांग नहीं है, ये संवेदना की माँग है।
उन्होंने ये भी माँग की है कि छुट्टी के दिन किसी भी निजी स्कूल को ये अधिकार न हो कि वह अपने स्टाफ को काम पर बुलाए, और अगर कोई शिक्षक नहीं आता, तो उसकी सैलरी काटना अवैध घोषित हो।
पत्र में एक और ज़रूरी बात कही गई है छुट्टी के नाम पर स्कूल भले बंद हो जाएं, मगर मोबाइल पर क्लास और होमवर्क की बारिश शुरू हो जाती है। अब बच्चा जो बारिश के कारण बाहर नहीं जा सकता, वो मोबाइल के स्क्रीन में गड़ जाता है। ऑनलाइन क्लास के बाद, वॉट्सऐप पर पीडीएफ़ की कतार लग जाती है करो होमवर्क, भेजो फ़ोटो।
क्या कोई सोचता है कि इसका मनोवैज्ञानिक असर क्या पड़ रहा है छोटे बच्चों पर? स्क्रीन से आँखें दुखती हैं, पीठ दर्द करती है, नींद ख़राब होती है, और मन पर एक भारीपन सा बैठ जाता है छुट्टी के दिन भी छुट्टी नहीं होती।

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