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गेम की सरकारी मान्यता पर भी असमंजस बरकरार

हल्द्वानी। ड्रीम 11 का शोर इन दिनों टी.वी. चैनलों से लेकर युवाओं व नौकरी पेशा लोगों की जुबान पर चढ़ा हुआ है। हर दूसरा युवा या नौकरी पेशा व्यक्ति इन दिनों ड्रीम 11 के गेम में डूबा हुआ मिल जायेगा। रातों रात करोड़पति बनने के चक्कर में युवा पीढ़ी इसकी लती बन रही है। जो एक खतरनाक बीमारी के रूप में उन्हे अपनी गिरफ्त में लेती जा रही है। एक तरह से मौन सरकारी संरक्षण में चल रहे इस ड्रीम 11 गेम (जुआ) के चक्कर में युवा बर्वाद हो रहे है। बड़े बड़े क्रिकेट सितारे टी.वी. पर इसका प्रचार करते साफ देखे जा सकते है। जो चन्द रूपयों में करोड़पति बनने का सपना युवाओं को दिखा रहे है। और युवा उनके बुने शब्द जाल के बहकाने में आकर अपनी खून पसीने से अर्जित कमाई यहां लगाकर बर्बाद हो रहा है। यदि समय रहते इस तरह की तमाम गेम ऐप पर रोक नही लगायी गयी तो मानसिक अवसाद से ग्रसित युवाओं की एक बड़ी फौज देश में होगी। इसलिए समय रहते ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
यहां बता दे कि ड्रीम 11 एक ऐसा खेल है जो 39 व 59 रूपए में युवाओं को रातों रात करोड़पति बनने का सपना दिखा रहा है। कभी जीतने पर 1 करोड़ तो कभी दो करोड़ और आजकल 4 करोड़ की राशि जीतने पर दी जा रही है। इस चक्कर में लाखों युवाओं को इस खेल की लत लगी हुई है और अपनी वर्षो की मेहनत की कमाई को यूं ही बर्बाद करने में लगे हुए है। सरकारी क्षेत्र में तैनात कर्मचारी भी इसका शिकार बनते जा रहे है। आखिर बने भी क्यो न दिन में कोई चैनल खोलें तो ड्रीम 11 का विज्ञापन पल-पल आपके आखों के सामने चलता रहेगा। बड़े बड़े क्रिकेट सितारे इस खेल का प्रचार करते देखे जाते है और विज्ञापन के अंत में यह जरूर बोलते है कि इसमें वित्तिय जोखिम है और इसकी लत भी लग सकती है। जब आस पड़ोस में कोई आदमी करोड़पति बनता है तो दिमाग का कीड़ा और जाग जाता है कि जब यह जीत सकता है तो में क्यों नहीं। अब तो देखा देखी में एक नहीं 15-20 टीमें लगाकर करोड़पति बनने की फिराक में रहते है। लालच आता ही है। लेकिन यह लालच न आए उसके दृढ़ शक्ति बहुत कमजोर होती है। ऐसे भी कई लोग है जो ड्रीम 11 पर इसका शिकार हो रहे है। इस बर्बादी में युवा पीढ़ी ही नहीं कई बुद्धिजीवी भी प्रतिदिन हजारों रूपए इस खेल में लगा रहे है। इस खेल में प्रतिदिन लोग पैसे की बर्बादी देख मानसिक तनाव से पीड़ित हो रहे है जिसके चलते छोटी-छोटी बातों पर उनकी परिजनों व मित्रों से नोक-झोक भी होना आम हो गया है। सबसे ज्यादा असर युवाओं में तनाव व चिड़चिड़ेपन के रूप मे देखा जा रहा है, ये खेल नशे की भांति युवाओं के मानसिक संतुलन को खोखला कर रहा है। समाज का एक धड़ा इस खेल को सही मानता है और एक धड़े ने इसे आधुनिक जुए की संज्ञा दी है। अब युवाओं और बुद्धिजीवियों को खुद तय करना है कि इस खेल में भाग लेना है या दूरी बनानी है।

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