21 अगस्त को हरदा का गैरसैंण में धरना
हल्द्वानी। पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत समय-समय पर सोशल मीडिया के माध्यम से सियासी बवंडर पैदा करते रहते है। हरदा वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में मिली हार को शायद अभी तक नहीं भूल पाये है। यही वजह है कि सत्ता में वापसी ना होने की टीस उन्हें अन्दर-ही-अन्दर कचोटती रहती है। केदारनाथ की आपदा के बाद सीएम बने हरदा को इस बात का भी दुःख है कि तमाम सियासी और परिस्थितिजन्य मुश्किलों का सामना करने के बावजूद उन्होंने प्रदेश के हित में कई कार्य किये, लेकिन उसके बाद भी उनकी सत्ता में वापसी नहीं हो पाई। उन्होंने मौजूदा भाजपा सरकार पर गैरसैंण की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए उन मजबूरियों का भी जिक्र किया है, जिसके कारण वह गैरसैंण को राजधानी घोषित नहीं कर पाये और नए जिलों के गठन से भी कदम पीछे हटाने पड़े। हरीश रावत ने अपनी पार्टी के ही कुछ विधायकों को इसके लिये जिम्मेदार माना है। हरीश रावत ने फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि राहुल गांधी की कृपा थी और भगवान केदारनाथ का बुलावा था कि अत्यधिक कठिन, विषम समय में मुझे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला। डेढ़-पौने दो साल में राज्य को प्राकृतिक आपदा से उभारा, केन्द्र सरकार से आपदा से उबारने में तो कोई मदद मिली नहीं मगर राजनीतिक मदद जरूर मिल गई, राज्य पर राजनीतिक अस्थिरता थोप दी गई। डेढ़-पौने दो साल प्राकृतिक आपदा से लड़ते रहा और एक सवा साल राजनीतिक अस्थिरता से लड़ता रहा। लेकिन बहरहाल 3 साल से कुछ अधिक समय तक मुख्यमंत्री रहा तो मुझसे भी कुछ सवाल पूछे जा रहे है? स्वाभाविक है। इस क्रम में उन्होंने भाजपा सरकार पर गैरसैंण की उपेक्षा का आरोप लगाया है। इसी उपेक्षा को जगजाहिर करने के लिए हरीश रावत ने 21 अगस्त को गैरसैंण में धरना और अनशन का निर्णय लिया है। हरीश रावत ने उन हालातों का भी जिक्र किया है जिसके कारण वह गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित नहीं कर पाये। इसके लिये हरीश रावत ने कर्णप्रयाग के तत्कालीन विधायक के राजनीतिक हठ को जिम्मेदार माना है। इसी तरह हरीश रावत ने कोटद्वार, काशीपुर, रूड़की, नरेंद्र नगर, पुरोला, डीडीहाट, रानीखेत, गैरसैंण, बीरोंखाल को नए जिले के रूप में गठित करने की योजना पर विराम लगाने की परिस्थितियों का भी जिक्र किया है।