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चार्ज देने के बाद भी ट्रांसफर आदेश पर हस्ताक्षर? सेवानिवृत्त जी.एस. पांडेय पर उठे सवाल, वन निगम में मचा हड़कंप

देहरादून। उत्तराखंड वन विकास निगम में इन दिनों एक आदेश चर्चा का विषय बना हुआ है। मामला सीधे तौर पर निगम के तत्कालीन प्रबंध निदेशक जी.एस. पांडेय से जुड़ा है, जिन पर आरोप है कि उन्होंने अपने सेवानिवृत्त होने के बाद भी अधिकारियों के ट्रांसफर ऑर्डर पर हस्ताक्षर किए। हैरानी की बात यह है कि यह सब उस तारीख के बाद हुआ, जब उन्होंने पदभार नए प्रबंध निदेशक डॉ. समीर सिन्हा को सौंप दिया था।
पत्र संख्या ई-2169 दिनांक 31 जुलाई 2025 के अनुसार, तत्कालीन प्रबंध निदेशक जी.एस. पांडेय ने अपराह्न में अपना कार्यभार डॉ. समीर सिन्हा को सौंप दिया था। इसी पत्र में साफ लिखा गया है कि अब समस्त पत्राचार समीर सिन्हा के नाम से किया जाए।
इसके बावजूद, पत्रांक ई-2186, दिनांक 31 जुलाई 2025, को जारी किया गया ट्रांसफर आदेश जी.एस. पांडेय के दस्तखत से जारी हुआ, जिसमें तीन अधिकारियों रामकुमार , जगदीश राम और धीरेश सिंह बिष्ट का तत्काल प्रभाव से स्थानांतरण किया गया। इस पत्र पर भी जी.एस. पांडेय के हस्ताक्षर स्पष्ट रूप से अंकित हैं।
हालांकि यह आदेश 31 जुलाई की तिथि में जारी दिखाया गया है, लेकिन वन निगम सूत्रों के अनुसार, यह पत्र 2 अगस्त 2025 को विभिन्न कार्यालयों में मेल और डाक द्वारा भेजा गया, यानी उस तारीख को जब जी.एस. पांडेय विधिवत रूप से सेवानिवृत्त हो चुके थे।
विभागीय नियमों के अनुसार, सेवानिवृत्त अधिकारी किसी भी प्रकार का प्रशासनिक आदेश जारी नहीं कर सकता। फिर सवाल यह उठता है कि अगर कार्यभार 31 जुलाई को अपराह्न में ही सौंप दिया गया, तो फिर इस आदेश पर पांडेय जी के दस्तखत कैसे? डॉ. समीर सिन्हा द्वारा 31 जुलाई 2025 के दिन कार्यभार ग्रहण प्रमाण-पत्र भी जारी किया गया, जिसमें यह स्पष्ट रूप से दर्ज है कि उन्होंने उसी दिन अपराह्न में कार्यभार ग्रहण किया। यानी 31 जुलाई 2025 की शाम से ही नए एमडी डॉ. समीर सिन्हा अधिकृत प्रबंध निदेशक थे।
इसके बाद भी जी.एस. पांडेय द्वारा ट्रांसफर आदेश जारी करना प्रशासनिक नियमों की अवहेलना माना जा रहा है।
वन निगम मुख्यालय में चर्चा है कि यह अकेला ट्रांसफर आदेश नहीं है, बल्कि कुछ अन्य आदेश भी जी.एस. पांडेय ने चार्ज छोड़ने के बाद साइन किए। हालांकि इनकी पुष्टि नहीं हो सकी है, लेकिन यदि यह सच हुआ, तो यह गंभीर अनियमितता और दस्तावेज़ों से छेड़छाड़ का मामला बन सकता है। यह मामला अब शासन के संज्ञान में आ चुका है। सवाल यह भी उठता है कि क्या विभागीय जांच होगी? क्या आदेश रद्द किए जाएंगे? और क्या सेवानिवृत्त अधिकारी पर कार्रवाई संभव है? यदि यह सिद्ध हो जाता है कि यह आदेश चार्ज ट्रांसफर के बाद साइन हुआ, तो यह न केवल आचरण नियमों का उल्लंघन है, बल्कि प्रशासनिक शुचिता पर भी सवाल खड़े करता है।

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