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देहरादून: उत्तराखंड कैडर के आठ आईपीएस अफसरों के केंद्रीय प्रतिनियुक्ति संबंधी ऑफर लिस्ट में नाम आने के बाद प्रदेश पुलिस मुख्यालय और शासन में बवाल मचा हुआ है। 4 जनवरी को केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी की गई सूची में डीआईजी और आईजी स्तर के अफसरों के नाम थे, जिनमें से आईजी स्तर के तीन अफसरों ने प्रतिनियुक्ति पर जाने से इनकार कर दिया है। उनका कहना है कि संबंधित अफसरों से सहमति नहीं ली गई थी। इसके अलावा, कुछ आईपीएस अफसरों की विजिलेंस स्टेटस और प्रोफाइल भी केंद्र को नहीं भेजी गईं, जिससे उनके नाम पैनल में शामिल नहीं हो पाए। शासन ने इन आरोपों को खारिज किया है, लेकिन यह सवाल उठ रहा है कि प्रतिनियुक्ति के मामले में पारदर्शिता का अभाव था, जिससे पुलिस मुख्यालय और गृह विभाग सवालों के घेरे में हैं।

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शासन ने दी सफाई, कहा- रिपोर्ट भेजी गई थी

उत्तराखंड में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति वाले आईपीएस अफसरों की सूची को लेकर उठे सवालों पर शासन ने जवाब दिया है। पहला सवाल यह था कि अफसरों की सहमति क्यों नहीं ली गई और दूसरा सवाल यह था कि 2006 बैच के अधिकारियों की विजिलेंस रिपोर्ट क्यों नहीं भेजी गई? इन सवालों का जवाब देते हुए शासन ने प्रेस बयान जारी कर स्थिति स्पष्ट की।

शासन ने कहा कि 2006 बैच के जिन अफसरों की विजिलेंस रिपोर्ट के बारे में सवाल उठाए जा रहे हैं, उन्हें केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अक्तूबर 2023 में मांगा था, और संबंधित रिपोर्ट समय पर भेजी गई थी। इसमें स्वीटी अग्रवाल, अरुण मोहन जोशी, एएस ताकवाले और राजीव स्वरूप का नाम शामिल था। इसलिए यह सवाल बेमानी है कि उनकी रिपोर्ट नहीं भेजी गई।

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इसके अलावा, शासन ने बताया कि 2004/2005 बैच के पांच अधिकारियों, 2007 बैच के चार अधिकारियों और 1997 बैच के दो अधिकारियों की विजिलेंस रिपोर्ट भी 2024 में केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजी गई थी। शासन ने यह भी स्पष्ट किया कि आईपीएस अफसरों के केंद्रीय इम्पैनलमेंट की प्रक्रिया पूरी तरह से केंद्र सरकार के स्तर पर होती है, और राज्य सरकार सिर्फ आवश्यक सूचनाएं केंद्र को भेजती है।

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