हल्द्वानी: निकाय चुनाव की सरगर्मी प्रदेश भर में फैल चुकी है। बाजार, मोहल्ले, हर जगह जीत और हार के आंकड़ों पर चर्चा हो रही है। लेकिन इन सियासी हलचलों के बीच, “उत्तराखंड जनादेश” की टीम जब महानगर हल्द्वानी के कुछ इलाकों में लोगों से चुनाव को लेकर उनकी राय जानने पहुंची, तो जो तथ्य सामने आए, वो चौंकाने वाले थे। कुछ लोग तो जीत-हार पर शर्तें तक लगा रहे थे, तो कुछ लोग इसके बिल्कुल उलट बातें कर रहे थे। खैर, लोकतंत्र में सभी को अपनी राय रखने का अधिकार है, लेकिन आइए जानते हैं उन लोगों की राय, जो चुनाव को एक अलग दृष्टिकोण से देख रहे हैं।
हमारी टीम के एक सदस्य ने जब हेयर ड्रेसर की दुकान पर बैठे कुछ लोगों से पूछा, “भाई साहेब, इन दिनों राजनीति में क्या चल रहा है?” तो एक शख्स का जवाब बिल्कुल चौंकाने वाला था: “मैं इन चक्करों में नहीं पड़ता, मुझे अपने बच्चों को पालना है, राजनीति से मेरा घर नहीं चलता, नौकरी से चलता है।” पढ़े-लिखे लोग भी इस पर ऐसी प्रतिक्रियाएं देते हैं जैसे राजनीति से उनका कोई वास्ता नहीं। कई लोग यह भी मानते हैं कि छात्रों को राजनीति से दूर रहना चाहिए, जबकि छात्रों का भविष्य राजनीति से जुड़ी नीतियों पर निर्भर करता है।
अब सवाल यह है कि क्या एक लोकतांत्रिक देश में राजनीति के प्रति यह उदासीनता सही है? मशहूर शायर जावेद अख्तर कहते हैं, “राजनीति से खुद को दूर रखने की बात वैसी है, जैसे कोई दिल्ली में रहता हो और कहे कि उसका प्रदूषण से कोई लेना-देना नहीं है।” हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी का हर पहलू – खाना-पीना, आना-जाना, सुरक्षा, कमाई, स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा – सभी कुछ राजनीति से प्रभावित होता है। राजनीति का मतलब सिर्फ चुनाव लड़ने से नहीं है, बल्कि इसका मतलब है यह तय करना कि हम किस तरह की नीतियों को समर्थन देते हैं और उनके प्रभाव से हम कैसे जुड़ते हैं।
समाज में राजनीति के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण धीरे-धीरे गहरा रहा है, और इसका कारण यही है कि राजनीतिक ताकतें नहीं चाहतीं कि लोग राजनीति के प्रति जागरूक हों। यह सोच इतनी पुख्ता हो गई है कि राजनीति को अपराधियों और भ्रष्ट लोगों से जोड़ दिया गया है, और लोग सही राजनीति से भी बचने लगे हैं। इतना गहरा प्रभाव पड़ा है कि वोट देने का अधिकार होने के बावजूद लोग चुनाव के दिन घूमने निकल जाते हैं।
लोकतंत्र में हर नागरिक को बराबरी का अधिकार और भागीदारी का अवसर मिलता है। हमारा लोकतंत्र इस बात पर आधारित है कि हर नागरिक अपनी राजनीतिक जिम्मेदारी निभाए और नेताओं से सवाल पूछे। इसलिए, राजनीति से उदासीन होना न केवल गलत है, बल्कि यह हमारी जिम्मेदारी से भागने जैसा है।