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देहरादून: जब जवाब नहीं होते, तो नोटिस भेजे जाते हैं। और जब सच परेशान करता है, तब खिसयानी बिल्ली खंभा नोचती है। आपको ये कहावत जरूर याद होगी। और अगर नहीं याद, तो उत्तराखंड वन विकास निगम के तत्कालीन प्रबंध निदेशक जी.एस. पांडेय आपको इसका जीवंत उदाहरण दे सकते हैं। हमारी 2 सितंबर 2025 की रिपोर्ट ‘पांडेय जी रिसर्च टूर या सरकारी खजाने पर मौज-मस्ती?’ को लेकर जो मानहानि नोटिस हमें भेजा गया, वो भी कुछ वैसा ही है जवाब कम, आरोप ज़्यादा। लेकिन चलिए, मूल मुद्दे पर आते हैं।
31 जुलाई 2025 को सेवानिवृत्त हो चुके श्री पांडेय ने रिटायरमेंट से महज तीन महीने पहले एक अंतरराष्ट्रीय रिसर्च यात्रा पर उड़ान भरी। वियतनाम और कोलम्बिया दो देश, आठ दिन, सरकारी खर्च पर। कहा गया कि वहां लकड़ी से बनने वाले उत्पादों का अध्ययन किया गया, पेड़ों के संरक्षण की विधियां सीखी गईं और उत्तराखंड के वनों को एक नई दिशा देने की योजना बनाई गई।
सुनने में ये किसी रिसर्च डॉक्युमेंट्री की स्क्रिप्ट जैसी लगती है। लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे अलग है।
सूचना के अधिकार (आरटीआई ) के तहत मिली जानकारी में कई दिलचस्प ख़ुलासे हुए हैं जैसे क्रूज़ राइड: जहां सिर्फ 2.5 घंटे की बोट राइड होनी थी, उसे दो दिन की गतिविधि बताकर 3,50,191 रुपये का बिल बनाया गया। लगता है पानी पर चलने का खर्च अब सोने से भी भारी हो गया है। दूसरा है जेब खर्च: पांडेय जी ने यात्रा के दौरान विभाग से प्रति दिन 200 डॉलर, यानी लगभग 1.3 लाख रुपये का जेब खर्च भी वसूला। तीसरा है तोहफे और नमक मिर्च: यात्रा से पहले 10 हिमालय सिल्क की शालें (29,142 रुपये), 10 ब्रह्मकमल टोपी (10,119 रुपये), और मसाले (3,097 रुपये) तक की खरीदारी सरकारी पैसे से की गई। भाई साहब, ये रिसर्च टूर था या शगुन का सामान ले जाने का बहाना? अब सबसे बड़ा सवाल य़ह है कि जब रिटायरमेंट में महज तीन महीने बाकी थे, तब ऐसी महंगी यात्रा की ज़रूरत क्यों पड़ी? और अगर वाकई कोई रिसर्च हुई थी, तो आज तक उसकी रिपोर्ट कहां है? अब तक विभाग को कोई लिखित अध्ययन, कोई संक्षिप्त दस्तावेज़ तक नहीं सौंपा गया है। तो क्या जनता के टैक्स का पैसा ऐसे ही टूरिज्म की भेंट चढ़ेगा? 30-40 लाख रुपये, जो इस रिसर्च यात्रा पर खर्च हुए क्या यह उत्तराखंड के बजट का मखौल नहीं है? इस सच्चाई को प्रकाशित करने पर हमसे कहा गया कि हमने मानहानि की है। हम पूछते हैं रिपोर्ट कहां है?, टूर की प्रासंगिकता क्या थी?, क्रूज़ के 3.5 लाख रुपये किस आधार पर खर्च हुए?, जेब खर्च का आधार क्या था? ये सवाल जनता के हैं। और इन्हीं सवालों से डरकर शायद नोटिस भेजा गया है। पर हम डरे नहीं हैं। क्योंकि हमारी पत्रकारिता टूर प्रायोजित नहीं होती। क्योंकि सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं। जनता के पैसों से किया गया हर दुरुपयोग एक दिन सामने आएगा, चाहे कितने ही नोटिस क्यों न भिजवा दीजिए। इस रिसर्च टूर और सरकारी खजाने की मौज मस्ती की रिपोर्ट हम आपको आगे भी उपलब्ध कराते रहेंगे, क्योंकि आरटीआई के तहत और भी जानकारियों सामने आयी है।

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