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पीएम सिंचाई योजना में 27.65 लाख का ‘ड्रिप’ घोटाला!

देहरादून: हरिद्वार जिले के लक्सर और बहादराबाद ब्लॉक में कुछ खेतों में न तो पानी पहुंचा, न पाइप बिछे, न ही कोई सिंचाई की व्यवस्था दिखाई दी। लेकिन सरकारी कागजों में ये खेत न केवल ‘ड्रिप’ हो चुके थे, बल्कि लाखों रुपये का भुगतान भी इन्हीं कागजों पर कर दिया गया।
सूचना के अधिकार (आरटीआई) से हुआ यह खुलासा एक बार फिर सरकारी योजनाओं की जमीनी सच्चाई को उजागर करता है और यह सवाल छोड़ता है कि क्या सरकार की नीतियां वाकई ज़मीन पर उतरती हैं या सिर्फ पोर्टल पर?
शिकायतकर्ता और आरटीआई कार्यकर्ता फैजान अंसारी ने लक्सर के उप जिलाधिकारी सौरभ असवाल को एक विस्तृत शिकायती पत्र सौंपा है। इसमें बताया गया है कि प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत ‘ड्रिप सिंचाई / माइक्रोड्रिप / स्प्रिंकलर सिस्टम’ के नाम पर 32 किसानों के नाम पर कुल ₹27,65,004 का भुगतान दर्शाया गया, जबकि जमीन पर कोई काम नहीं हुआ।
इनमें से कई किसानों को तो योजना की जानकारी तक नहीं है। कुछ ने तो साफ कहा कि उनके नाम से झूठे शपथ पत्र बनाए गए, फर्जी हस्ताक्षर किए गए और कागजों में सिंचाई व्यवस्था बिछा दी गई। शिकायत में ये भी कहा गया है कि ब्लॉक स्तर के अधिकारी और उद्यान विभाग के कर्मचारी किसानों की फर्जी फोटो और लोकेशन का इस्तेमाल कर पोर्टल पर रिपोर्ट अपलोड करते रहे। ये तस्वीरें उस विकास की थीं जो सिर्फ कंप्यूटर स्क्रीन पर हुआ था।
मदनपाल नामक लाभार्थी के नाम पर ₹87,657 और ₹1,53,140 का भुगतान दर्शाया गया है। जबकि उन्होंने किसी भी दस्तावेज पर हस्ताक्षर न किए जाने की बात कही है। यानी उनका खेत सिंचित हुआ सिर्फ सिस्टम की नज़रों में, असलियत में वो आज भी प्यासा है।
इस पूरे मामले की गंभीरता को देखते हुए फैजान अंसारी ने एसआईटी (विशेष जांच टीम) से जांच कराने की मांग की है। उनका कहना है कि दोषी अधिकारियों पर मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेजा जाए और उनकी संपत्तियों की जांच हो। साथ ही उन किसानों को वास्तविक लाभ दिलाया जाए जिनका नाम इस घोटाले में इस्तेमाल हुआ है।
एसडीएम लक्सर, सौरभ असवाल का कहना है कि फैजान नामक व्यक्ति ने शिकायत पत्र दिया है। पत्र के आधार पर टीम गठित कर जांच की जाएगी। यदि योजना वितरण में किसी तरह की अनियमितता पाई जाती है तो दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
कुल मिलाकर यह मामला सिर्फ एक घोटाले का नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि कैसे विकास की तस्वीरें सिर्फ स्क्रीन पर बनाई जाती हैं, और खेतों तक पहुंचते-पहुंचते सिस्टम ‘लीक’ हो जाता है।
कभी-कभी सरकारें यह भूल जाती हैं कि ‘स्मार्ट इंडिया’ की बुनियाद वहीं किसान हैं जिनके नाम पर यह सारा तामझाम खड़ा किया जा रहा है। लेकिन जब उन्हीं किसानों की पीठ पर झूठ के फोटोशॉप लगाए जाते हैं, तो ये योजनाएं धोखे की खेती बन जाती हैं।
अब देखना ये है कि क्या इस बार सिस्टम अपनी जिम्मेदारी निभाएगा या फिर एक और आरटीआई कार्यकर्ता की आवाज़, फाइलों में दबी रह जाएगी।

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