

हल्द्वानी में बेरोजगारी का आंगनबाड़ी संस्करण
हल्द्वानी: उत्तराखंड के हल्द्वानी में जब एमएससी, बीटेक और मास्टर डिग्री धारक युवाओं को 8 हजार रुपये प्रतिमाह के मानदेय पर आंगनबाड़ी सहायिका और वर्कर का नियुक्ति पत्र मिला, तो हँसी नहीं आई रोना आया।
क्योंकि ये वही युवा हैं जो एक दशक पहले स्मार्ट सिटी, डिजिटल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया के सपनों में पले-बढ़े थे। उन्हें कहा गया था कि डिग्री लो, नौकरी खुद चलकर आएगी। लेकिन नौकरी नहीं आई। भूख आई, हताशा आई और अब आंगनबाड़ी की ड्यूटी आई।
हल्द्वानी के ब्लॉक कार्यालय में जब महिला एवं बाल विकास मंत्री रेखा आर्या ने लगभग 300 नव नियुक्त आंगनबाड़ी सहायिकाओं को नियुक्ति पत्र दिए, तो एक तस्वीर उभरकर सामने आई बेरोजगारी के नीचे दबती शिक्षा की।
जहां नौकरी पाने की न्यूनतम योग्यता 12वीं रखी गई थी, वहीं नियुक्ति पाने वालों में एमएससी, बीटेक, पीएचडी और पोस्ट ग्रेजुएट्स की कतार लगी थी।
मैंने बॉटनी से एमएससी की है। अब मैं आंगनबाड़ी सहायिका बनी हूं। मुझे बहुत खुशी हो रही है। उमा कोरंगा, नवनियुक्त सहायिका (कृपया इस खुशी को व्याख्या की ज़रूरत नहीं है), मैंने कंप्यूटर साइंस से एमएससी की है। सेवाभाव के लिए आवेदन किया था। अब नियुक्ति पत्र मिला है। बहुत खुशी हो रही है। पूनम आर्या, नवनियुक्त सहायिका (सेवाभाव और सिस्टम की विडंबना का नया अध्याय), रेखा आर्या जी ने भी अपने अंदाज़ में घोषणा कर दी डिजिटल युग में आंगनबाड़ी केंद्र भी डिजिटल होंगे। अब सवाल यह है कि क्या ये पीएचडी और बीटेक धारक महिलाएं आंगनबाड़ी को डिजिटल करेंगी, या खुद को मजदूरी के डिजिटल संस्करण में बदल देंगी? ये सिर्फ आंगनबाड़ी नियुक्तियां नहीं हैं। ये एक सिस्टम के फेल हो जाने की चिट्ठी है, जो 8 हजार रुपये में एमएससी वालों की काबिलियत खरीद रहा है।
जो युवा एक वक्त विदेश जाने के सपने देखते थे, वो अब पोषण कार्ड और टीकाकरण रजिस्टर संभालेंगे।
शायद आज भी कोई प्रतियोगी परीक्षा की कोचिंग में बैठा लड़का मन में दोहरा रहा होगा एक दिन आएगा, जब सरकारी नौकरी मिलेगी, चाहे वो किसी भी नाम से क्यों न आए!