

लोकतंत्र की खुली मंडी में सौदेबाज़ी के संकेत
नैनीताल/ हल्द्वानी: पंचायत चुनाव परिणामों के बाद लोकतंत्र का असली चेहरा अब सामने आने लगा है। जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी अब केवल प्रतिनिधित्व की नहीं, बल्कि ताक़त, पैसे और ‘मैनेजमेंट’ की कुर्सी बन चुकी है। जिस कुर्सी पर बैठकर जनहित के फैसले लिए जाने चाहिए, उस पर बैठने के लिए अब पैसे, प्रभाव और कारोबारी गठजोड़ की बोली लग रही है।
जैसे ही चुनाव परिणाम आए, जिला पंचायत सदस्यों के फोन बंद हो गए। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों पक्ष इन सदस्यों को ‘समझाने’ और ‘सजाने’ में जुट गए। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अपने-अपने खेमे से अध्यक्ष बनाने के दावे कर रहे हैं, लेकिन गणित साफ है यह मुकाबला विचारधारा का नहीं, सौदेबाज़ी का है।
भाजपा को सात सीटें मिली हैं, चार अन्य सदस्य उनके समर्थन से जीते हैं यानी कुल 11 सीट। लेकिन बहुमत की दहलीज़ यानी 14 तक पहुंचने के लिए अब उन्हें दो-तीन और निर्दलीयों की ज़रूरत है। लेकिन सवाल यह है कि क्या वे विचारधारा के बल पर साथ आएंगे, या फिर ‘वज़नदार’ लिफ़ाफ़ों के दम पर?
सूत्र बताते हैं कि दीपा दरमवाल को भाजपा मैदान में उतार सकती है। पति आनंद दरमवाल, होटल और ज़मीनों के कारोबारी हैं। ज़ाहिर है, अगर चुनाव पैसे से लड़ा जाएगा, तो दरमवाल फैमिली पीछे नहीं हटेगी।
वहीं कांग्रेस के पास सीधे तौर पर सिर्फ़ दो सीटें हैं, लेकिन 8-10 सदस्यों की पृष्ठभूमि कांग्रेस से जुड़ी मानी जा रही है। कांग्रेस लाखन सिंह नेगी को उम्मीदवार बना सकती है एक ऐसा नाम जो भाजपा की नीतियों से बागी हो चुका है और ज़मीन, शराब और ठेकेदारी के कारोबार में गहरी पैठ रखता है।
क्या यह संयोग है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों की उम्मीदें अब ऐसे कारोबारियों पर टिकी हैं, जिनके पास राजनीतिक पूंजी कम और आर्थिक पूंजी ज़्यादा है?
1 अगस्त को जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए आरक्षण सूची जारी हुई और नैनीताल की सीट को ‘अनारक्षित’ घोषित कर दिया गया। यानी अब कोई भी चाहे वह महिला हो या पुरुष इस पद के लिए दावेदारी कर सकता है। लेकिन जनप्रतिनिधित्व की ये खुली छूट भी अब सिर्फ़ उन लोगों के लिए है जो चुनाव में धनबल से अपने रास्ते बना सकते हैं।
नैनीताल में 27 सदस्यीय जिला पंचायत बोर्ड में सिर्फ़ सदस्य नहीं चुने गए, बल्कि अब ये 27 लोग अगले 5 साल तक पूरे जिले की नीति और दिशा तय करेंगे। और अगर इन्हें चुना जाएगा किसी सौदे के तहत, किसी वाणिज्यिक लेन-देन के ज़रिए तो फिर आम आदमी का वोट सिर्फ़ एक औपचारिकता है।
यहाँ बता दें कि इस बार 18 सीटें पहाड़ क्षेत्र की हैं और 9 मैदान क्षेत्र की। ऐसे में अब राजनीतिक नारे और ध्रुवीकरण का दूसरा चरण शुरू हो चुका है। क्या अब विकास और स्थानीय मुद्दों की बजाय ‘पहाड़ बनाम मैदान’ की राजनीति हावी होगी? कुल मिलाकर नैनीताल की पंचायत राजनीति इस समय एक ऐसे मोड़ पर है, जहाँ विचारधारा, विकास और जनसेवा की बातें पीछे छूट चुकी हैं। अब लड़ाई है कौन कितनी बोली लगाता है, कौन कितने लोगों को मना पाता है और कौन अपने कंधे पर जिले की सत्ता का ताज पहनता है लोकतंत्र के नाम पर चल रही इस मंडी में अगर कुछ सबसे सस्ता हो गया है, तो वो है जनता का भरोसा।