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अब स्कूलों को नियमों का पालन करना होगा, नहीं चलेगी मनमानी

देहरादून: शिक्षा के मंदिर को व्यवसाय का अड्डा बनने से रोकने की मंशा के साथ जिला प्रशासन ने निजी स्कूलों, विशेषकर नामी गिरामी कैम्ब्रियन हॉल स्कूल पर सख्त कार्रवाई की है। अभिभावकों की लगातार शिकायतों और मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद डीएम सविन बंसल ने नियमों का उल्लंघन करने वाले स्कूलों के खिलाफ कड़ा प्रवर्तन शुरू किया।
जब अभिभावकों का एक बड़ा जत्था डीएम कार्यालय पहुंचा और अपनी व्यथा साझा की, तभी से कार्रवाई का सिलसिला शुरू हुआ। ‘भय बिनु होई न प्रीति’ की कहावत की तरह प्रशासन ने बिना भय के अभिभावकों के हित में कदम उठाए। निजी स्कूलों को कई बार तमीज, आग्रह और उदबोधन के माध्यम से सुधारने की कोशिश की गई, लेकिन जब कोई असर नहीं हुआ तो जनहित के लिए सख्त प्रवर्तन कार्रवाई की गई।
मई में जारी आदेशों की खुलेआम अवहेलना करने वाले स्कूलों की शिकायत मिलने पर डीएम ने तत्काल सख्त रुख अपनाया। जिला प्रशासन ने स्कूल संचालकों को स्पष्ट हिदायत दी कि स्कूल में फीस वृद्धि 5 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। मनमानी ढंग से 10 प्रतिशत बढ़ाई गई फीस को 5 प्रतिशत तक घटाने पर स्कूल को मजबूर होना पड़ा। साथ ही, अभिभावकों से अब तक वसूली गई अधिक फीस को आगामी महीनों के शुल्क से घटाने की लिखित अण्डरटेकिंग भी स्कूल ने दी है।
इस कार्रवाई में मुख्य विकास अधिकारी अभिनव शाह की अध्यक्षता में गठित जिला प्रशासन की कोर टीम ने जांच की और कैम्ब्रियन स्कूल की सीबीएससी संबद्धता के लिए जारी एनओसी को रद्द करने का प्रस्ताव भी तैयार किया। 14 जुलाई को आयोजित जनता दरबार में मोनिका राणा समेत कई अभिभावकों ने शिकायत की कि स्कूल द्वारा नियमों का उल्लंघन कर फीस बढ़ाई गई है, जिससे वे आर्थिक दबाव में हैं।
जिला प्रशासन ने स्कूलों को निर्देश दिए कि अभिभावक कहीं से भी किताबें और ड्रेस खरीद सकते हैं, जिससे स्कूलों के बहुचर्चित मुनाफाखोराना रवैये पर अंकुश लगा। कक्षा 9वीं और 10वीं के उन विद्यार्थियों से जिनका कंप्यूटर साइंस विषय नहीं है, कंप्यूटर फीस नहीं ली जाएगी। इसके अलावा, जिन अभिभावकों ने अभी तक फीस नहीं जमा की है, उन पर कोई विलंब शुल्क भी नहीं लगाया जाएगा।
जिलाधिकारी सविन बंसल ने स्पष्ट कहा शिक्षा सबका अधिकार है। अभिभावकों और बच्चों का शोषण कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। शिकायत मिली तो मान्यता निरस्त करने की कार्रवाई से भी पीछे नहीं हटेंगे। शिक्षा के मंदिर को व्यवसाय का अड्डा नहीं बनने देंगे।
जिला प्रशासन की इस सख्ती से अभिभावकों को बड़ी राहत मिली है। प्रशासन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब स्कूलों को नियमों का पालन करना होगा और अभिभावकों के हितों की रक्षा की जाएगी।

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