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एलोपैथी से जल्द आराम पाने वाले दुनियांभर के तमाम अस्वस्थ लोग अब जानने लगे हैं कि जिन दवाओं से तुरंत आराम मिलता है उसके दूरगामी परिणाम बड़े भयावह दिख रहे हैं। एलोपैथी की दवाओं से लंबे इलाज की परिणति केंसर और किटनी फेलियर के रूप में दिख रही है। इसलिए लोग अब आयुर्वेद का रुख करने लगे हैं। इन्ही सब बातों को ज़हन में रखते हुए हमने किसी अनुभवी चिकित्सक से मिलने का मन बनाया, हमारी खोज पूरी हुई और हम एक ऐसे आयुर्वेदिक चिकित्सक से मिले जिनका इस क्षेत्र में 42 वर्षों का अनुभव है और जिन्होंने हर असाध्य रोग का सफल इलाज किया है। इस सम्बन्ध में डॉ रविन्द्र सिंह से हुई संजय रावत की बातचीत के मुख्य अंश...

सबसे पहले तो हम आयुर्वेद को सरल भाषा में जानना चाहते हैं ?
आयुर्वेद का शाब्दिक अर्थ है आयु का वेद जिस में मानवीय आयु को बचाने, शरीर में उत्पन्न होने वाली सभी प्रकार की बीमारियों का प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली द्वारा उपचार उपलब्ध है। मानवीय शरीर में रोगों की उत्पत्ति के पीछे तीन दोषों को कारक माना गया है। जो शरीर में बात, कफ और पित के रूप में मौजूद है। मानवीय शरीर में ये दोष एक ही स्थिति में नहीं रहते है क्योंकि ये गतिशील है। और किसी व्यक्ति के आहार, जीवन शैली और पर्यावरण के अनुरूप इनका रूप बदलता रहता है।

शरीर में ये बात, कफ और पित्त क्या हैं इस पर कुछ रोशनी डालिए ?
मानवीय शरीर में बात 80 प्रकार का, कफ 20 प्रकार का और पित्त 40 प्रकार का है। इसी तरह आयुर्वेद में हर रोग के लिए अलग दवा है। शरीर में उत्पन्न होने वाले रोगों के पीछे वात, कफ, पित्त ही मुख्य कारक है। यदि प्रकृति के अनुरूप शरीर में वात, पित्त व कफ का संतुलन बना हुआ है तो शरीर बीमार नहीं पड़ता। किसी बीमारी के पीछे मूल कारण शरीर में वात, पित्त व कफ का संतुलन बिगाड़ा या डगमगाना है।

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इन तीनों चीजों को अलग अलग कैसे समझा जा सकता है ?
वातको शरीर की गंध, गति, शरीर की गतविधियों और आवेग में परिवर्तन के लिए जिम्मेदार माना जाता है। वात शरीर की सभी कोशिकाओं में मौजूद है, शरीर में वात की मात्रा के विभिन्न स्थानों और अंगों में इसके वितरण के अनुरूप भिन्न होती है। वात मुख्य रूप से जोड़ों, बड़ी आंत, कान की हड्डियों कंधे की मांसपेशियों और पीठ के निचले हिस्से में देखा जाता है। इसके लक्षणों में त्वचा में खुरदुरापन, मुख का कसैला स्वाद, ऐठन, शरीर में तेज दर्द शामिल है।

पित्त इसका मुख्य कार्य विभिन्न चयापचय की प्रक्रिया को नियंत्रित करने के साथ ही शरीर में हार्मोंन को नियमित करना है। वात की तरह पित्त भी शरीर की सभी कोशिकाओं में मौजूद है। इसकी क्रिया और मात्रा अलग-अलग स्थानों और अंगों के अनुसार अलग-अलग है। यकृत, हृदय, त्वचा, पेट, अग्न्याशय, और तिल्ली पित्त के प्रमुख स्थल है। इसके लक्षणों में मुह में खट्टा और तीखा स्वाद, अत्यधिक पसीना आना, पेट में जलन, गहरे लाल और सफेद रंग को देखने में असमर्थता शामिल है।
कफकफ मुख्य रूप से छाती, जोड़ों, जीभ और मस्तिष्क की श्लेष झिल्ली में पाया जाता है। यह शरीर को वसा, त्वचा, नमी, फेफड़े, मल और मूत्र के माध्यम से अतिरिक्त गर्मी से छुटकारा दिलाता है। इसके लक्षणों में कमजोर पाचनतंत्र मुख में नमकीन स्वाद, पीली त्वचा, भारीपन या ठंड लगना शामिल है। वात के भी कई प्रकार है।

वात के प्रकारों को भी कुछ विस्तार दीजिए ?
वात के प्रकार हैं उदान, समन, अपान, व्यान और प्राण हैं।
उदानयह नाभि क्षेत्र, छाती, नथुनों और नाक के मार्ग में स्थित है यह गुण हमारी चेतना, बोलना, शरीर का तेज, उर्जा का स्तर आदि को नियंत्रित करने में मदद करता है।

समान यह पूरे पेट में मौजूद होता है और भोजन को आत्मसात करने में मदद करता है तथा पाचन और उत्सर्जन को नियंत्रित करता है।
अपान यह आंत सम्बन्धी अंगों, जनन अंगों, मूत्र पथ नितंब और पेट व जांध के बीच के अंगों में स्थित है। यह मल मूत्र, बीर्य का तरल पदार्थ, मानसिक धर्म प्रवाह को नियंत्रित करने और बच्चे के जन्म में मदद करता है।
प्राण यह मस्तिष्क के कुछ महत्वपूर्ण केन्द्रों में स्थित है। और अन्य प्रकार से वात की गतविधियों को नियंत्रित करने में मदद करता है।
व्यान यह हृदय में स्थित है और स्वायत तंत्रिका तंत्र के अनुरूप रीढ़ की हड्डी के अनैच्छिक रिपलेक्स में मदद करता है, यह मांसपेशियों के संकुचन और विश्राम रक्त और लसीका परिसंचरण और शरीर के साव्र जैसे कि नसों की उतेजना के माध्यम से पसीना आदि को नियंत्रित करता है।

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एक आम शब्द हम अक्सर सुनते हैं जठराग्नि ! इसके बारे में कुछ बताइए ?
वात पित्त व कफ दोषों के अलावा शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग जठराग्नि भी है, यही पाचन अग्नि अपनी गर्मी से जल्दी ही भोजन को पचा देती है। शरीर की बाकी अग्नियों की तुलना में यह सब से अधिक महत्वपूर्ण है। यह मुख्य रूप से पेट और आंतों के बीच नाभि के आस-पास होती है।

आपको क्या वजह लगती है कि लोगों का आयुर्वेद पर भरोसा प्राथमिकता पर क्यों नहीं बन पाया है ?
यह अच्छा सवाल है आपका। आयुर्वेद चिकित्सा में वह शक्ति है जो शरीर के आसाध्य रोगों का भी समूल नाश कर सकती है। पर जरूरत है सही ढंग से चिकित्सा पद्धति को अपनाने की है। आज त्वरित मुनाफे के लिए कई लोग आयुर्वेद चिकित्सा के नाम पर दवाओं में स्टाराइड का अत्यधिक इस्तेमाल कर आयुर्वेद को बदनाम कर रहे है। दवाओं में अपने मन मर्जी से स्टाराइड मिलाना ही आयुर्वेदिक उपचार पर ग्रहण लगाए हुए है।

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