देहरादून। उत्तराखंड का आपदा प्रबंधन विभाग फिर सुर्खियों में है। सुर्खियों में सिर्फ इसलिए नहीं कि अधिशासी निदेशक समेत सात कर्मचारियों-अधिकारियों को वित्तिय अनियमितता समेत कुछ अन्य मामलोें में नोटिस जारी किया गया है। बल्कि इसलिए कि जिन कार्मिकों को नोटिस दिया गया है, उनमें से दो बड़े अधिकारी त्यागपत्र दे चुके है। वे नोटिस पीरियड में है और उनका रिलीव ऑर्डर अभी जारी नहीं हुआ है। एक अन्य अधिकारी बहुत पहले नौकरी छोड़ चुके है और एक रिटायरमेंट हो चुके है। दिलचस्प यह है कि जिन मामलों में नोटिस दिया गया है, उनकी पुष्टि बहुत पहले हो चुकी है। फिर भी कार्रवाही नहीं हुई। आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिशासी निदेशक पीयूष रौतेला और तत्कालीन वित्त अधिकारी केएन पांडेय के खिलाफ भाजपा नेता रविंद्र जुगरान ने वर्ष 2022 में वित्तिय अनियमितता की शिकायत मुख्य सचिव से की थी। उन पर एक करोड़ से अधिक की अनियमितता संबंधी आरोप है। मुख्य सचिव के निर्देश पर विभाग के वित्त नियंत्रक मामूर जहां, अनु सचिव प्रेम सिंह राणा और लेखाकार सतेंद्र सिंह को जांच अधिकारी बनाया गया। तीनों अधिकारियों ने अपनी जांच रिपोर्ट में लिखा कि आरोप गंभीर किस्म के है। आरोपी अधिकारी जांच टीम के साथ सहयोग नहीं कर रहे है और आधी अधूरी पत्रावली दे रहे है। इस आधार पर जांच संभव नहीं है। पूरे मामले का स्पेशल ऑडिट कराकर जांच के लिए एसआईटी का गठन किया जाए। 27 मई 2022 को की गई जांच टीम की इस संस्तुति को आज तक दबाकर रखा गया है। न तो स्पेशल ऑडिट कराया गया और न हीं एसआईटी गठित हुई। खास बात यह भी है कि ऑडिट के लिए भारत के नियंत्रक एवं महालेखी परीक्षा कार्यालय से तीन प्रयास हो चुका है, लेकिन उसे संबंधित दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराया जा रहे है। इतना ही नहीं जनवरी 2024 में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की हाई पावर कमेटी की बैठक हुई थी। इस बैठक में सचिव आपदा प्रबंधन रंजीत सिन्हा ने स्वीकार किया था कि वर्ष 2020 में प्राधिकरण के गठन से पहले अस्तित्व में रहे आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण केंद्र में वित्तीय अनियमितता के कई मामले हुए है। इसकी जांच और इसमें कार्रवाही बेहद जरूरी है। तत्कालीन मुख्य सचिव एसएस संधू ने सचिव आपदा प्रबंधन को संबंधित अफसरों-कर्मचारियों को नोटिस भेजने और तत्काल जांच शुरू करने को कहा था। मुख्य सचिव के निर्देश के बाद जांच तो करायी गयी लेकिन इसकी रफ्तार को धीमा रखा गया। अब जबकि आरोपी सात कर्मचारियों में से चार रिजाइन कर चुके है, तब उन्हें नोटिस भेजा जा रहा है। सवाल यह है कि एसआईटी जांच की सिफारिश को किसके दबाव में रोका गश? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि जब आपदा प्रबंधन सचिव जनवरी में ही स्वीकृत कर चुके है कि छह करोड़ से अधिक की वित्तिय अनियमितता हुई है तो कार्रवाई को क्यों टाला गया।
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