हल्द्वानी। नाबालिग देव साह मारपीट प्रकरण में शामिल तीन आरोपियों को काठगोदाम पुलिस डेढ माह के लम्बे अंतराल के बाद भी गिरफ्तार करने में नाकामयाब रही है। आरोपियों की गिरफ्तारी में हो रही देरी से पुलिस की तो छीछालीदर तो ही रही है। साथ ही उसकी कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े हो रहे है, मसलन क्या काठगोदाम पुलिस के हाथ आरोपियों के गिरेहबान तक नहीं पहुच पा रहे है? या फिर पुलिस बिगडैल साहबजादों के घरवालों के उचे रसूख को देखते हुये पंगु बनी हुयी है? या फिर कोई और वजह है जिसका दबाव पुलिस की गिरफ्तारी में बाधक बन रहा है? बहरहाल वजह चाहे कुछ भी हो आरोपियों की गिरफ्तारी में लगातार हो रही देरी काठगोदाम पुलिस को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर रही है। पुलिस का यह हाल तब है जब कि आरोपियों के खिलाफ काठगोदाम थाने में बीएनएस की संगीन धाराओं 107, 115, 324 (2), 352, 353 (3) के तहत मामला दर्ज है। नाबालिंग देव साह मारपीट प्रकरण में मृतक देव साह के साथ आरोपियों द्वारा की गयी बर्बरता पूर्ण पिटाई की गंभीरता व संवेदनशीलता को न्यायालय भी महसूस कर रहा है। तभी तो जिला एंव सेशन न्यायाधीश ने एक बार फिर मारपीट प्रकरण के मुख्य आरोपी रिहान खान की जमानत याचिका को नामंजूर कर दी है। इसके पीछे न्यायालय का कहना था कि यदि अभियुक्त को जमानत पर रिहा किया गया तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अभियुक्त गवाहों को धमकाने के साथ ही उन्हें सभी तरह से प्रभावित करने का प्रयास करेगा, इतना ही नहीं वह फिर से फरार होने की कोशिश कर सकता है। इसी के साथ न्यायालय का मानना था कि जिसे पुलिस तमाम प्रयासों के बाद भी गिरफ्तार नहीं कर पायी और जिसके लिये न्यायालय को गैर जमानतीय अधिपत्र जारी करना पड़ा और उसके बाद पुलिस द्वारा उसे रामपुर उत्तर प्रदेश से गिरफ्तार किया गया। इसी के साथ रिहान खान के अधिवक्ता द्वारा पेश की गयी चिकत्सीय परीक्षण रिपोर्ट को लेकर न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त रिहान खान ने न्यायालय व पुलिस को गुमराह करने के लिये जानबूझ कर ऐसा दस्तावेज तैयार करवाया। इसके अलावा कोर्ट ने माना कि मृतक देव साह के साथ जिस बर्बरता पूर्वक मारपीट की गयी उस से छात्र देव खुद को मानसिक रूप से इतना प्रताड़ित महसूस करने लगा कि उसके पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं रहा। इस पूरे मामले में न्यायालय की संजीदगी तो दिखायी देती है, लेकिन जिस पुलिस को बढ़ते अपराधों पर अंकुश लगाने के लिये संजीदा होना चाहिए उसके अंदर यह भाव पूरी तरह नदारद नज़र आ रहा है। प्रकरण की तीन सह आरोपी सफराज नसीम, कृष्णा व तनिष्क को खुली हवा में श्वास लेने की छूट देकर पुलिस क्या साबित करना चाहती है यह समझ से परे है। पुलिस को देखना होगा कि जिन आरोपियों की गिरफ्तारी को लेकर यह पंगु बनी हुयी है, वह सामान्य किशोर न होकर अपराधिक प्रवृति से भरे ऐसे उदण्ड युवा है जिन्होने एक हँसते खेलते घर के चिराग को बुझाकर श्मशान में तब्दील कर दिया, ऐसे अपराधिक प्रवृति के ये युवा छूट के नहीं बल्कि दण्ड के अधिकारी है, जिन्हें और खुले रहने की छूट देने का अर्थ है, किसी और गुनाह को आमंत्रण देना। वैसे भी आपराधिक मानसिकता के ये युवा देर सेवेर देव साह जैसे किसी अन्य प्रकरण को अंजाम नहीं देंगे इसकी क्या गांरटी है।
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