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उत्तराखंड-यूपी परिसंपत्ति विवाद आज भी वहीं का वहीं है खड़ा
देहरादून: 24 साल हो गए, उत्तराखंड राज्य बने हुए। सरकारें बदलीं, चेहरे बदले, घोषणाएं हुईं, बैठकें हुईं… लेकिन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के बीच परिसंपत्ति विवाद आज भी उसी मोड़ पर खड़ा है, जहां 2000 में था। हर दो-चार महीने में एक बैठक होती है, बयान आता है कि “अब हल निकलेगा।” लेकिन नतीजा? सिफर!
ताज़ा मामला फिर गर्माया है क्योंकि सरकार ने एक बार फिर परिसंपत्तियों का जिक्र छेड़ दिया है। कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने अपने विभागों को प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिए हैं। यानी 24 साल बाद भी प्रस्तावों और बैठक की तैयारी ही चल रही है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जब लखनऊ गए थे और नवंबर 2021 में यूपी-उत्तराखंड की संयुक्त बैठक हुई थी, तो बड़ी-बड़ी बातें हुईं। यहां तक कहा गया कि 21 सालों से अटके मुद्दे अब सुलझा लिए गए हैं। सर्वे की बात हुई, संपत्तियों के बंटवारे की बात हुई… लेकिन चार साल बाद भी कोई सर्वे नहीं हुआ, बंटवारा तो बहुत दूर की बात है।
बता दे कि ऐसा नहीं है कि ये कोशिश पहली बार हुई हो। 6 अगस्त 2017 को भी एक बैठक हुई थी। उस वक़्त भी तय हुआ था कि हरिद्वार, देहरादून और श्रीनगर में स्थित यूपी के गेस्ट हाउस उत्तराखंड को सौंपे जाएंगे। यहां तक कि कुंभ भूमि को लेकर भी सहमति बनी थी। उत्तराखंड के सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज ने यूपी सरकार को धन्यवाद भी दे दिया था। लेकिन काग़ज़ पर बनी सहमति जमीन पर लागू कभी नहीं हुई। पूर्व की त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में भी बैठकें हुईं। बात आगे बढ़ी। लेकिन अगर आप पूछें कि 24 सालों में क्या मिला? तो जवाब है कि सिर्फ हरिद्वार का अलकनंदा गेस्ट हाउस। बाकी की परिसंपत्तियां आज भी उत्तर प्रदेश के अधिकार में हैं। इन सबके बीच सबसे चौंकाने वाली बात य़ह है कि एक अनुमान के मुताबिक उत्तराखंड में स्थित यूपी की संपत्तियों की कीमत 20 हजार करोड़ रुपये से भी ज़्यादा है।
अब फिर वही पुराना वादा दोहराया गया है। सरकार कह रही है कि नए सिरे से प्रस्ताव तैयार करवाए जा रहे हैं। सवाल उठता है कि कितनी बार प्रस्ताव तैयार होंगे? कितनी बार बैठकें होंगी? “राज्य बनने के बाद से सिर्फ ‘कोशिश’ ही चल रही है। समाधान कभी हुआ ही नहीं।”
तो क्या 25वां साल भी बैठक, प्रस्ताव और बयानबाज़ी में ही निकल जाएगा? क्या उत्तराखंड को अपनी हक़ की जमीन पाने के लिए फिर दशकों का इंतज़ार करना होगा?

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इन संपत्तियों पर है विवाद

भीमगोडा बैराज (हरिद्वार)

बनबसा का लोहिया हेड बैराज

कालागढ़ रामगंगा बैराज

टिहरी व गंगा पर बनी अन्य परियोजनाएं

हरिद्वार की कुंभ और कांवड़ भूमि

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