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देहरादून: उत्तराखंड की हवा में फिर से पुराने स्कैंडलों की बू है। साल 2016 की राजनीतिक हलचलों को आज, 2025 में फिर से हवा दी जा रही है। और हवा भी सीबीआई के पंखों से। आठ साल पुराने एक स्टिंग ऑपरेशन और दल-बदल के मामले में अब सीबीआई ने नेताओं को समन भेजना शुरू कर दिया है।
अब आप पूछेंगे कि आठ साल बाद सीबीआई को अचानक क्या याद आ गया? वही तो हम भी पूछ रहे हैं। शायद सीबीआई को कोई पुराना पेंडिंग फोल्डर फिर से फाइलों के ढेर में से निकल आया। या हो सकता है चुनावों की सरगर्मियों में कुछ नाम फिर से चमकने लगे, और कुछ नाम धुंधलाने लगे हों तो सिस्टम ने कहा हो चलो कुछ फाइलें झाड़-पोंछ लो।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, जो इन दिनों न्याय यात्रा और आदि कैलाश यात्रा के बीच व्यस्त रहते हैं, को जब मीडिया ने समन पर घेरा, तो उन्होंने वही किया जो एक अनुभवी नेता करता है सरलता से इनकार और बारीक़ी से तंज।
मुझे सीबीआई के नोटिस की कोई जानकारी नहीं है। अगर दिया गया है तो आश्चर्य है कि इतने साल बाद ये केस फिर बाहर निकाला गया। क्या कोई खास मकसद है? हो सकता है मेरी गतिशीलता देख कर कोई ‘नमस्ते हरीश रावत’ कहना चाहता हो!
गौरतलब है कि दल-बदल करने वाले कई विधायक, जो कभी कांग्रेस में थे और अब बीजेपी में मंत्री बन चुके हैं, उन्हें भी सीबीआई ने पूछताछ के लिए बुलाया है। कुछ की पूछताछ हो चुकी है, बाकी लाइन में हैं। दिलचस्प ये है कि जिन नेताओं पर उस वक्त आरोप थे, कुछ आज सरकार का हिस्सा हैं। और अब सवाल यह उठता है क्या इस जांच से कुछ निकलेगा? या सिर्फ सुर्खियां बनेंगी?
पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत, जिनकी उस वक्त की शिकायत पर मामला शुरू हुआ था, अब जांच से थोड़ा दूरी बना रहे हैं। तय तारीख़ पर नहीं पहुंच पाए, और सीबीआई को पहले ही सूचित कर दिया। अब कहा जा रहा है कि वह जल्द दिल्ली में बयान दर्ज करवाएंगे।
बता दे कि वर्ष 2016 में हरीश रावत सरकार के समय एक स्टिंग वीडियो सामने आया था। वीडियो में रावत कथित तौर पर विधायकों को समर्थन में बने रहने के लिए लाभ देने की बात करते हुए दिखाई दिए थे। वहीं से ये पूरा मामला तूल पकड़ गया और अब, सालों बाद फिर से सीबीआई सक्रिय हो गई है।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत इस पूरे मामले में कहते है कि हमने पहले भी झेला है, आगे भी झेलेंगे। हम न्याय के लिए लड़ते रहेंगे, चाहे कुछ भी कुर्बानी क्यों न देनी पड़े।
हरदा के इस बयान में संघर्ष की झलक है, लेकिन साथ ही राजनीतिक अनुभव का संकेत भी। शायद इसीलिए उन्होंने कहा कि अब उनकी न्याय यात्रा में ये मुद्दा भी शामिल हो जाएगा।
कुल मिलाकर उत्तराखंड की जनता अब ये सब जानती है।
वो ये भी जानती है कि जब भी चुनाव आते हैं, पुरानी फाइलें नए पोस्टरों की तरह दीवारों पर चिपकाई जाती हैं। अब यहां सवाल य़ह है कि जब सिस्टम किसी नेता को अचानक फिर से याद करने लगे, तो समझ जाइए या तो चुनाव आ रहे हैं, या उस नेता की लोकप्रियता!

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