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क्योंकि सत्ता की असली ताकत संवेदनशीलता होती है

देहरादून: देहरादून की ठंडी शाम। हवा में हल्की मिठास थी शायद ईगास बग्वाल पर्व की। शहर की गलियों में दाल के पकोड़ों की खुशबू तैर रही थी, और गंगोत्री एन्कलेव की महिलाएं पारंपरिक परिधान में सजी थीं। माथे पर टीका, हाथों में थाल, और चेहरों पर एक अपनापन। इंतज़ार था किसी ऐसे व्यक्ति का, जो सत्ता के गलियारों से निकलकर जनता के आंगन तक पहुँचे और वो आए, जिलाधिकारी सविन बंसल। महिलाओं ने उन्हें रियल हीरो कहा और यह शब्द महज़ एक सम्मान नहीं था, बल्कि जनता की उस भावना का इज़हार था, जो एक संवेदनशील प्रशासनिक अधिकारी के प्रति उमड़ पड़ा था। सविन बंसल जब पहुंचे, तो कोई औपचारिक भाषण नहीं था, न किसी मंच की ऊँचाई, बस लोगों के बीच बैठा एक अफसर, जिसने कहा जनहित में जो भी काम कर रहा हूं, वो मेरा दायित्व है, उपकार नहीं। यही एक वाक्य उस भीड़ में गूंजा, जैसे कोई नेता नहीं, बल्कि एक पड़ोसी बोल रहा हो, जो भरोसे के साथ कहता है मैं हूँ न। उन्होंने मुस्कुराते हुए महिलाओं से माफी भी मांगी 1 नवंबर को ईगास पर व्यस्तता के कारण आपके बीच नहीं आ सका, इसके लिए क्षमा चाहता हूँ। इस देश में सत्ता से माफी सुनना, अपने आप में दुर्लभ दृश्य है। लेकिन देहरादून ने यह देखा एक डीएम, जो जनता से माफी मांगता है और फिर दाल के पकोड़े खाते हुए उनके साथ हँसता है। गंगोत्री एन्कलेव के अध्यक्ष गिरीश गैरोला बताते हैं डीएम साहब को एक तस्वीर भेंट की गई, जिसमें उनके जनसेवा के पलों को सहेजा गया था। यह वही सविन बंसल हैं, जो कुछ दिन पहले एसएसपी को पीछे बैठाकर बाइक से शहर की सुरक्षा व्यवस्था देख रहे थे। लोग चौंक गए थे, लेकिन शायद इसी सहजता ने उन्हें रियल हीरो बना दिया। औरतें कहती हैं डीएम साहब हमारे बीच आए, ये हमारे लिए पर्व का सबसे बड़ा तोहफा था। बच्चों में उत्साह था, मानो कोई फिल्मी हीरो उनके बीच आ गया हो। लेकिन असल में, यह कहानी किसी हीरो की नहीं, बल्कि उस प्रशासनिक मानवता की है, जो आज के दौर में दुर्लभ होती जा रही है। ईगास बग्वाल लोक पर्व है, सौहार्द का प्रतीक है। और जब एक जिलाधिकारी इस पर्व में शामिल होकर कहता है कि मेरी प्राथमिकता जनता की समस्याओं का समाधान है, तो यह सिर्फ एक प्रशासनिक बयान नहीं होता, यह भरोसे की पुनर्स्थापना होती है। देहरादून की इस छोटी-सी शाम ने साबित किया कि जनता अब भाषण नहीं, संबंध चाहती है। और जब कोई अफसर जनता के दरवाजे पर दस्तक देता है, तो सरकार, फाइलों से निकलकर जीवन का हिस्सा बन जाती है। कहानी छोटी है, पर असर बड़ा क्योंकि यहाँ सविन बंसल नाम का एक अफसर, जनता के बीच जाकर यह साबित कर गया कि सत्ता की असली ताकत संवेदनशीलता होती है।

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