

फिर सुर्खियों में आया उत्तराखंड वन विकास निगम, अफसरों का ऐश की रसोई घोटाला कथा, आपके टैक्स का स्वाद चख रहे थे ये अधिकारी
देहरादून: राजधानी दून की हसीन वादियों में एक और घोटाले की बदबू उठी है। इस बार मामला सिर्फ पैसे का नहीं, बल्कि सोच का है। उत्तराखंड वन विकास निगम के 46 अधिकारियों ने जनता के टैक्स से चलने वाले खजाने को अपने ‘पेट पूजा’ और ‘घरेलू ऐशोआराम’ के लिए खामोशी से लूट डाला। किसी ने कुछ नहीं पूछा, किसी ने कुछ नहीं बताया। एक सरकारी फाइल के पीछे छिपी यह कहानी 2.5 करोड़ रुपए की है, जो 34 महीनों तक चली। मजे की बात देखिए हर महीने करीब 8 लाख रुपए खर्च हुए, सिर्फ इसलिए कि साहबों के घरों में रोटी पकाने वाले रसोइये सरकारी पैसों से तनख्वाह ले सकें।
मई 2022 में वन निगम ने अपनी नई सेवा नियमावली लागू की। इसमें साफ शब्दों में कुक रखने की व्यवस्था समाप्त कर दी गई थी। लेकिन, साहब लोग नियमों से ऊपर होते हैं। उन्होंने आदेशों को चूल्हे में झोंक दिया और चुपचाप अपने-अपने घरों में सरकारी रसोइये रख लिए। और फिर जो हुआ, वह किसी काल्पनिक कहानी जैसा नहीं, बल्कि सरकारी भ्रष्टाचार की एक जीवित मिसाल है। सूत्र बताते हैं कि कुछ अधिकारियों ने अपने ही रिश्तेदारों के नाम पर कुक तैनात कर दिए। मतलब रसोइया भी घर का और पैसे भी सरकारी, ऐसी ‘घरघुस्सू’ व्यवस्था में पारदर्शिता की उम्मीद करना बेईमानी होगी। क्या अब कैग ऑडिट या आरटीआई से सच्चाई सामने आएगी, या फिर सब फाइलों के पेट में ही दबा दिया जाएगा? जब वन निगम के कर्मचारियों ने विरोध किया और ऑडिट की आहट तेज हुई, तो अप्रैल 2025 में अचानक सभी कुक बाहर का रास्ता दिखा दिए गए। ये वही अधिकारी हैं, जो कार्यालय में कड़क अनुशासन की बात करते हैं और नियमों की दुहाई देते हैं। पर जब बात अपनी सुविधा की आती है, तो नियम उनके चाय की ट्रे के नीचे दब जाते हैं। ये सब वही लोग हैं जो फाइलों पर दस्तखत करते हैं, नोटशीट में नैतिकता की चटनी लगाते हैं और मीटिंग में पारदर्शिता के घोल से सिस्टम को धोने का नाटक करते हैं। प्रेम सिंह चौहान, जो वन निगम कर्मचारी संघ के महामंत्री हैं, साफ कहते हैं कि यह वित्तीय अनियमितता है। संयुक्त मंत्री कीर्ति सिंह नेगी भी जोर देकर कहते हैं कि जिम्मेदार लोगों से हर हाल में वसूली होनी चाहिए। पर ये वही देश है जहां जांचें शुरू तो होती हैं, लेकिन अंजाम तक कितनी पहुंचती हैं ये सबको पता है।
ये कहानी सिर्फ कुक रखने की नहीं है। ये उस मानसिकता की कहानी है जहां अफसरशाही जनता के टैक्स को अपना जेबखर्च समझती है। जहां नियम सिर्फ कर्मचारियों पर लागू होते हैं, अधिकारी खुद को इन सबसे ऊपर समझते हैं। अंत में सवाल पाठक वर्ग से है कि क्या आप चुप रहेंगे? क्या आप भी वही करेंगे जो अक्सर होता है पढ़ेंगे, सिर हिलाएंगे और आगे बढ़ जाएंगे? या आप इस खबर को फैलाकर सिस्टम से जवाब मांगेंगे? क्योंकि ये सिर्फ अफसरों की रसोई नहीं थी, ये आपकी जेब का चूल्हा था जिसमें आपकी गाढ़ी कमाई को ईंधन बनाकर सारा स्वाद साहब लोग चख गए। अगर आप चुप हैं, तो यकीन मानिए, अगली बार रसोइया नहीं, पूरी सरकारी रसोई आपके नाम पर चल रही होगी और आपको पता भी नहीं चलेगा।
तत्काल दिए हैं इस प्रकरण में जांच के आदेश: उनियाल
वन मंत्री सुबोध उनियाल ने इस बाबत कहा कि उन्होंने इस पूरे प्रकरण में जांच के आदेश दे दिए हैं। लेकिन यहां सवाल यह नहीं कि आदेश दिए गए हैं। क्या जांच फाइलों के कोनों में मर जाएगी या फिर वाकई दोषियों से वसूली होगी?







