

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का उत्तराखंड को संदेश: यह आत्मसमीक्षा का समय है, आत्ममुग्धता का नहीं
राजेश सरकार
देहरादून: देहरादून की ठंडी हवा में सोमवार की सुबह कुछ अलग थी। विधानसभा भवन के प्रांगण में झंडे लहरा रहे थे, कुर्सियाँ चमक रही थीं, और मंच पर देश की सर्वोच्च नागरिक मौजूद थीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू। राज्य स्थापना की पच्चीसवीं वर्षगांठ पर वे उत्तराखंड की जनता को उसके प्रतिनिधियों को और शायद खुद इस युवा राज्य को आईना दिखाने आई थीं।
वे बोलीं अब आप 25 साल के हो चुके हैं। अब बहाने नहीं चलते। अब जमीन ही नहीं, पूरा आकाश जीतने का जज़्बा रखिए। उनकी आवाज़ में मातृत्व भी था, प्रेरणा भी, और एक हल्का-सा आदेश भी जैसे मां बेटे से कहे, अब जवान हो गया है, अब उड़ना सीख।
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि राज्य के लिए यह समय सिर्फ जश्न मनाने का नहीं, बल्कि पुनरावलोकन का है। अतीत की उपलब्धियों को देखिए, लेकिन आंख मूंदकर नहीं। जो छूटा है, उस पर बात कीजिए। आने वाले 25 वर्षों का रोडमैप तैयार कीजिए।
उनके इस वाक्य में वही सादगी थी जो एक शिक्षक में होती है सिखाने की चाह, और सुनने वाले में सुधार की उम्मीद। उन्होंने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार की पहल समान नागरिक संहिता ( यूसीसी ) और नकल विरोधी कानून की खुलकर सराहना की। उन्होंने कहा कि यह फैसले साहसिक हैं और जनता के हित में हैं।
फिर उनकी बात विधायकों की ओर मुड़ी। उन्होंने कहा उत्तराखंड की जनसंख्या लगभग डेढ़ करोड़ है, और उनमें से सिर्फ मुट्ठीभर लोगों को इस सदन में पहुंचने का सौभाग्य मिला है। यह सिर्फ पद नहीं, जिम्मेदारी है। अगर विधायक जनता की समस्याओं के समाधान में सक्रिय रहेंगे, तो जनता और जनप्रतिनिधि के बीच विश्वास का रिश्ता कभी नहीं टूटेगा। यह एक वाक्य नहीं था, बल्कि लोकतंत्र की रीढ़ की याद दिलाने वाला साधारण किंतु भारी संदेश था।
राष्ट्रपति मुर्मू ने वर्ष 2000 के नवंबर की याद दिलाई, जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने उत्तराखंड को एक अलग राज्य का दर्जा दिया था। उन्होंने कहा यह राज्य बेहतर शासन और संतुलित विकास के लिए बना था। और बीते 25 वर्षों में इसने विकास की दिशा में ठोस कदम बढ़ाए हैं। उन्होंने स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यटन और आधारभूत ढांचे में आई प्रगति की चर्चा की। साक्षरता दर बढ़ने, मातृ-शिशु मृत्यु दर में कमी और महिला सशक्तिकरण के प्रयासों पर खुशी जताई। उन्होंने कहा कि गौरा देवी, बछेंद्री पाल, सुशीला बलूनी और वंदना कटारिया जैसी महिलाओं की परंपरा ने इस राज्य को गौरवशाली बनाया है।
राष्ट्रपति ने कहा कि उत्तराखंड विधानसभा ने बीते 25 वर्षों में करीब 550 विधेयक पारित किए हैं। इनमें लोकायुक्त, जमींदारी विनाश, समान नागरिक संहिता और नकल विरोधी कानून जैसे विधेयक शामिल हैं। उन्होंने कहा कि यह सदन केवल बहस का मंच नहीं, बल्कि जनता के विश्वास की प्रयोगशाला है।
उन्होंने भारतीय महिला क्रिकेट टीम को वर्ल्ड कप जीतने पर भी बधाई दी एक छोटा-सा लेकिन प्रतीकात्मक इशारा, यह जताने के लिए कि महिलाएं जहां भी हैं, नेतृत्व कर रही हैं।
अपने संबोधन के अंत में राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा उत्तराखंड की 25 साल की यह यात्रा देश के लिए प्रेरणा है। आने वाले 25 वर्षों में यह राज्य आत्मनिर्भर भारत की कहानी का एक महत्वपूर्ण अध्याय बनेगा।
उनके शब्दों में उम्मीद थी, और उस उम्मीद में एक दृढ़ता भी जैसे वे यह जानती हों कि यह राज्य केवल पहाड़ों का समूह नहीं, बल्कि सपनों का घर है।
कुल मिलाकर देहरादून की यह सुबह महज एक सरकारी कार्यक्रम की नहीं थी। यह जनता के सपनों और नेताओं की जिम्मेदारी के बीच संवाद का पल था। राष्ट्रपति मुर्मू के शब्दों में कोई राजनीतिक नारा नहीं था, कोई शोर नहीं था बस एक शांत, सधी हुई आवाज़ थी, जो सत्ता को याद दिला रही थी कि जनता ने आपको कुर्सी नहीं, जिम्मेदारी दी है।
उन्होंने कहा अब जमीन ही नहीं, पूरा आकाश जीतिए। यह वाक्य सुनते हुए लगा जैसे राष्ट्रपति सिर्फ उत्तराखंड से नहीं, हम सब से कह रही हों। कि अब वक्त है, अपनी सीमाओं से ऊपर उठने का। वक्त है, सिर्फ विकास नहीं, विवेक दिखाने का और शायद यही लोकतंत्र की असली ऊंचाई है जहां जनता, जनप्रतिनिधि और जनसेवा तीनों एक ही आसमान में उड़ना सीखें।
विधानसभा में महिलाएं बढ़ें, तब ही लोकतंत्र बढ़ेगा
राष्ट्रपति ने सदन की ओर देखते हुए कहा सदन में महिलाओं की संख्या बढ़नी चाहिए। यह केवल प्रतिनिधित्व का सवाल नहीं, संतुलन का सवाल है। यह कहते हुए उन्होंने किसी पार्टी की ओर नहीं, बल्कि संविधान की आत्मा की ओर इशारा किया। उन्होंने उम्मीद जताई कि आने वाले वर्षों में उत्तराखंड की विधान सभा में और अधिक महिलाएं दिखेंगी, जो नीति नहीं, संवेदना से शासन करेंगी।

