

पहाड़ से निकलकर दुनिया तक: जब पौड़ी के एसएसपी ने अंतरराष्ट्रीय सफर की तैयारी की
देहरादून। जब एक अफसर नौकरी करता है, तो खबर नहीं बनती। लेकिन जब नौकरी करते हुए वो कुछ अलग करता है, तब कहानी बनती है। और कहानियों में अकसर वो लोग होते हैं, जो चुपचाप काम करते हैं फाइलों के ढेर से निकलते हुए, सड़कों पर उतरते हुए, और सिस्टम से जूझते हुए।
उत्तराखण्ड के 2014 बैच के आईपीएस अधिकारी लोकेश्वर सिंह की कहानी भी कुछ वैसी ही है। इन दिनों पौड़ी जिले के एसएसपी के तौर पर तैनात लोकेश्वर सिंह अब एक अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारी संभालने जा रहे हैं। खबर है कि उनका चयन संयुक्त राष्ट्र (यूएन) से जुड़े एक अंतरराष्ट्रीय संगठन में हुआ है।
ये वही उत्तराखण्ड है, जहाँ एक-एक पहाड़ी मोड़ पर सिस्टम की परीक्षा होती है। जहाँ एक तरफ़ अपराध कम है, तो दूसरी तरफ़ संसाधनों की कमी से पुलिस का हौसला रोज़ टकराता है। इसी हकीकत के बीच लोकेश्वर सिंह ने हरिद्वार, देहरादून, बागेश्वर, चंपावत, पिथौरागढ़ जैसे जिलों में काम किया।
जनपद बदले पर नीयत नहीं। वर्दी बदली नहीं, सोच बदली नहीं और शायद इसीलिए आज वो एक ऐसे मुकाम पर हैं, जहाँ से भारत की पुलिसिंग की एक बेहतर तस्वीर दुनिया को दिख सकती है।
उन्होंने पुलिस मुख्यालय और राज्य सरकार से कार्यमुक्ति की अनुमति मांगी है। अगर हरी झंडी मिली, तो वे उत्तराखण्ड पुलिस से अलग होकर इस नई अंतरराष्ट्रीय भूमिका में कदम रखेंगे। यह केवल एक अफसर की पदोन्नति नहीं है। यह उस भरोसे की मान्यता है, जो एक छोटे राज्य की पुलिस व्यवस्था में आज भी जिंदा है जहाँ देश सेवा अब विश्व सेवा में बदलने को तैयार है।
कहते हैं, वर्दी सिर्फ एक कपड़ा नहीं होती, वो एक जिम्मेदारी होती है। और जब वो जिम्मेदारी पहाड़ से निकलकर अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुंचती है, तब गर्व सिर्फ अफसर का नहीं होता पूरे राज्य का होता है।

